देख बदरिया उड़ी चुनरिया
हिलत जात मोरी कमारिआ
लाज के मारे मर जाऊँगी
उनको कैसे समझाऊँगी
गिर न जाऊँ पकड़ो रे
पवन संग करे वो बतिआ
कैसे बीती अब मोरी रतिआ
आँधी धूल चटावत है
मुझको कोई तो जकड़ो रे
उड़ न जाऊँ पकड़ो रे
घोर अँधेरा पतझड़ मेला
कोई तो इज्ज़त रख लेला
मैं अकेली पतली कमरिया
बल खा जाये जकड़ो रे
घबरा जायूँगी पकड़ो रे
कैसे पंक्षी उड़त जात है
देखो कितनी मौज मनात हैं
मौसम के तेवर बदलत रहे
कोई आकर जकड़ो रे
मर न जाऊँ पकड़ो रे
फिसलन देखो बनत जात है
मनवा मोरा घबराट है
फिसल कर गिर न जाऊँ मैं
थोड़ा थोड़ा घबराऊँ मैं
कोई तो मुझे जकड़ो रे
गिर न जाऊँ पकड़ो रे
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
No comments:
Post a Comment