Monday 25 December 2017

A-145 ज़िस्म फ़िरोशी 4.12.17--6.12 AM


बात वही जो सस्ती हो सस्ती हो पर मस्ती हो 
मस्ती हो रंग अमीरों के अमीरों के भई पीरों के 

पीरों के पैरों घूँघरू हो जब पैरों बँध सजता हो 
जब भी पैर थिरकते हों उनके घूँघरू बजता हो 

बजें तो उनको चैन पड़े शाही मन रंगत रैन पड़े 
रंग चढ़े ख़ुदाई का फ़रियाद उनसे वो करता हो  

फरियाद करे मन रोशन हो रोशन हो यौवन हो 
यौवन मन संसर्ग दिखे स्वर्ग दिखे तंदरुस्ती हो

स्वर्ग दिखे संदर्भ उठे तो मन में जुगनू जाग पड़े
जाग पड़े फरियाद करे जुगनू के दीये रोशन हो 
रोशन हो भई यौवन हो यौवन हो भई जोशी हो 
जोशी हो मदहोशी हो थोड़ी ज़िस्म फ़िरोशी हो 

जिस्म फ़िरोशी दोषी हो दोषी के रंग हज़ारों हो 
रंगों से मिलकर होली हो होली हो हमजोली हो

हमजोली हो रंगोली हो बात किसी ने खोली हो 
बात खुली फ़रियादी हो बन गयी जग हँसाई हो 

जग हँसाई बन आयी हो खुशियां लेकर आयी हो  
खुशियों की रहनुमाई हो यह बात उसने बताई हो 

एक प्यारी सी बात हो कम्बख्ती से मुलाकात हो 

याराना हो जज़्बात हो महकती हुई कोई बात हो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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