A-335 वो रिश्ते 16.12.17--9.07 PM
वो रिश्ते कहाँ गए जिनमें प्यार हुआ करता था
वो ज़न्नत कहाँ गई जिसमें यार हुआ करता था
वो अपने कहाँ गये जिनमें सुनने का आलम था
वो घर कहाँ गये जिसमें सरदार का कालम था
मैंने मोहब्बत की है करो बेशक़ इन्कार भी तुम
प्यार न करोगे पर कैसे करोगे तकरार भी तुम
दीद हो जाये बस करो बेशक़ इन्कार भी तुम
हम चले जायेंगे न करो बेशक़ दीदार भी तुम
माना कि हम तुम्हारे नहीं पर तुम तो हमारे हो
हम अच्छे न सही पर मुझे तो जान से प्यारे हो
नहीं भूलूँगा कि तुम मेरी हो ज़िंदगी है परस्पर
तुम भूल भी जाओ तो यह तुझ पर है मुनस्सर
तुम मेरी तक़दीर में न थे तदबीर बन कर आए
क्या बुरा था तदबीर में कि तुम इतना घबराये
न ख़्वाब पूरा हुआ न अरमानों को जिला पाए
किस बात का गुमां था जो तुम इतना इतराये
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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