Monday 25 December 2017

A-116 ऐ मेरे मन चल 24-7-15—7.35 PM

A-116 ऐ मेरे मन चल 24-7-15—7.35 PM 

ऐ मेरे मन चल आज ज़िंदगी के रंग हो ले 
ज़िंदगी के तौर तरीकों के बीच संग हो ले 
धूप छाँव ही ज़िंदगी है उसी में उमंग हो ले 
ग़म गिले शिक़वे हैं भाई उनके संग सो ले 

बहुत खुश था जब ज़िन्दगी मुस्कुराती थी 
उसका सज धज के आना बहुत भाती थी 
लम्हा लम्हा मैं भी इंतज़ार किया करता था 
मेरी प्रेरणा थी उसकी हर बात पर मरता था 

ज़िंदगी का एक एक अंग बहुत अपना था 
अपनों के बीच रचा एक बहुरंगी सपना था 
इन्द्रधनुष के बीच एक रंग मेरा अपना था 
मेरी ज़िंदगी का वही एक अदद सपना था 

सुनहरी रेखाओं में ही ज़िन्दगी का सार था 
हर एक गिला शिकवा बनता अति भार था 
तत्क्षण ही होता ज़िन्दगी में एक सुधार था 
उदासी का सबब आना भी कभी कभार था 

जैसी भी थी ज़िंदगी पर मुझे बहुत भाती थी 
सुन्दर सपने और हर अंग को फड़काती थी 
पर पता नहीं कभी कभी तो बहुत सताती थी 
आँखों में आंसू लिए होते और मुस्कुराती थी 

मुकद्दर है ज़िन्दगी का जो कुछ अपने तो हुए 
कुछ अपने हैं इसीलिये शिकवे व सपने हुए 
अपने ही न होते तो गिले शिकवे कहाँ होते 
किसके प्यार में मरते और सपने कहाँ होते

ऐ मेरे मन चल आज उदासी के रंग हो ले 
ज़िंदगी के तौर तरीकों के बीच संग हो ले 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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