जब मन हवा के रुख के साथ बहने लगा
ज़िन्दगी का हर अंग भी कुछ कहने लगा
पवित्र मन हर सुगन्ध मुझे अब भाने लगी
नवीन बृह्द तरंग बहुत कुछ सुनाने लगी
उसके बहाव ने मेरा मन ऐसे मोह लिया
जैसे सरगम ने एक नया ढंग टोह लिया
आसान होता है किसी के संग उड़ जाना
रिश्तों में बेख़ौफ़ हो रिश्तों में मर जाना
अक्सर देखा मैंने ज़िन्दगी के समंदर में
हम लोग छुप जाते हैं अँधेरे के अंदर में
मन पर बोझ टनों दबाव तन पे डाला है
जैसे ज़िंदगी स्वयं में ही एक घोटाला है
दूसरों की शिकायतें हम उठाये फिरते है
उस जनाज़े संग दिन रात सफर करते हैं
नहीं इल्म उससे मिलने वाली तन्हाई का
फिर भी हम तो उसका ही मनन करते हैं
जिंदगी जीनी है गधों तो बोझ को उतारो
किसी की शिकायत तुम खुद न निस्तारो
जिसकी शिकायत उसी के पास रहने दो
तुम खुश रहो उसका ग़म उसे ही सहने दो
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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Nicep
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