A-203 सज धज के 15.10.16--9.13 AM
सज धज के जब तू आई थी
लग रही तू मेरी परछाई थी
नहीं मुमकिन था दूर रहना
तू भी तो देख मुस्कराई थी
छूने को दिल भी बेक़रार था
उस पर से इतनी तन्हाई थी
नहीं छूने का भी इकरार था
तुमने भी तो ली अंगड़ाई थी
नहीं छूता तो रस्म टूट जाती
कितने दिनों बाद तू आयी थी
छू लेता तो क़सम टूट जाती
तू भी तो कितनी घबराई थी
हो चुकी थोड़ी जग हंसाई थी
तुमने भी यह बात बताई थी
दिल पर तो राज तुम्हारा था
तू फिर भी थोड़ा शरमाई थी
वायदा जो किया हमारा था
यह बात हमने समझाई थी
सज धज तुम न आया करो
तुमने भी तो कसम खाई थी
क्या करते इल्म टूट जाता
कैसे होती फिर भारपाई भी
वायदे कसम दोनों के बीच
कैसे होती फिर सुनवाई भी
तू और तक़दीर दोनों अपने थे
जेहन छिपी तस्वीर पराई थी
तुझको न बिसार पाते कभी
हो जाती गर जग हंसाई भी
सज धज के जब तू आई थी
लग रही तू मेरी परछाई थी
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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