Monday 25 December 2017

A-146 तन्हाई से ऊबकर 20.3.16—4.24 AM

A-146 तन्हाई से ऊबकर 20.3.16—4.24 AM

तन्हाई से ऊबकर सरपट सरपट जाते हुए 
हम और भी तनहा हुए थोड़ा घबराते हुए 
वो दौड़ते दौड़ते मेरे करीब भी आये 
चल दिए उनको यह जताते हुए 
फिर मिलेंगे यह बताते हुए 

उन्होंने मुझे बुलाया फिर भी समझ नहीं पाया 
निकल गए हम करीब से जैसे कोई सरमाया  
काश थोड़ा वक़्त होता हम समझ पाते 
निकल लिए थोड़ा मुस्कुराते हुए 
फिर मिलेंगे यह बताते हुए 

थोड़े क़रीब हो लेते तो करीबी भी आ जाती 
हम यूँ ही चल दिए थोड़ी दूर दूर जाते हुए 
हाँथों से हाँथ निकला कुछ बताते हुए 
बिना संभले बिना कुछ जताते हुए 
फिर मिलेंगे यह बताते हुए 

नीर तो सम्भले भी न थे और वो मुस्कराने लगे 
कुछ इधर की कुछ उधर की सुनाने लगे 
कोई जुदा हो जाता है इतनी आसानी से
वो भी जुदा हो गए थोड़ा मुस्कराते हुए 
फिर मिलेंगे यह बताते हुए 

किसका हिसाब रखूँ खुद का या तेरे कायदों का 
कौन सा सच कौन सा झूठ कौन से वायदों का 
भरोसा जिंदगी का या तरतीब की बात करूँ 
इसी कशमकश में सच बताते हुए 
फिर मिलेंगे यह बताते हुए


Poet: Amrit Pal Singh Gogia

1 comment:

  1. शब्दों का सही उपयोग विचारों का खूबसूरत बयाँ
    सहि है फिर मिलेंगे यह बतलाते हुए।
    इंतज़ार रहेगा...

    ReplyDelete