किसने बुलाया जो तुम चले आते हो
क्यूँ परेशान करते हो छलक जाते हो
जब देखो मुँह उठा के चल देते हो
कैसा सबब कौन सा फल देते हो
पता भी है कितना दुःख पहुँचाते हो
लोगों के सामने मुझे छोटा बनाते हो
शर्म के मारे ख़ुद को छुपाना पड़ता है
कितने अरमानों को दबाना पड़ता है
दुनिया से कट जाने को जी चाहता है
छोटे से छोटा दर्द भी ख़ूब सताता है
जब भी वो आते है……………
हक़ तो वह भी कुछ ज़्यादा ही जताते हैं
कुछ मीठी भला कुछ खट्टी भी सुनाते है
पर एक बात है!!!!
जब तुम अकेले में आते हो
बड़ा सकून दे के जाते हो
सारी कड़वाहट धुल जाती है
नयी ज़िन्दगी निखर जाती है
प्यार की बारी आती है
हर अदा मिल जाती है
पराये भी अपने से लगते हैं
सपने भी सुनहरे से लगते है
ख़ुद को ख़ुद से मिलाते हो
फिर भी कुछ नहीं जताते हो
वो तुम ही हो तुम ही मेरी नीर हो
वो तुम ही हो तुम ही मेरी हीर हो
वो तुम ही हो तुम ही मेरी हीर हो……
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