A-254 तेरा मयकदा 18.3.17--10.24 AM
तुमको देखकर अब बेवज़ह मुस्कुराना न पड़े
तेरी मोहब्बत में अब कुछ और छिपाना न पड़े
तेरा मयकदा छोड़ आये हैं तेरा शहर समझ
ढूंढ लेंगे एक नया शहर जहाँ दूर जाना न पड़े
तेरी रस्मों में उलझ कर ही तो जुदा हुए हम
ढूंढ लेंगे ऐसी डगर जहाँ रस्म निभाना न पड़े
बड़े मसरूफ रहे ज़िन्दगी भर तुमको मनाने में
ढूंढ लेंगे ऐसी नाज़नीन जिसको मनाना न पड़े
तेरे प्यार में दीवाना हुआ सब कुछ गवां बैठा
ढूंढ लेंगे वो इकरार जहाँ कुछ गवांना न पड़े
बड़ी शिद्दत से हम तेरे करीब आया करते थे
ढूंढ लेंगे वो वजह जिससे करीब आना न पड़े
बहुत भरोसा किया मैंने तुमको अपना समझ
ढूंढ लेंगे वो जज़्ब जिससे अपना बताना न पड़े
तुमने बहुत सारे वायदे किये थे साथ निभाने के
ढूंढ लेंगे वो वजह जिससे तुमको निभाना न पड़े
तुम सुन्दर हसीना हो इसका मुझे भी ग़रूर है
ढूंढ लेंगे वो मोहब्बत जिसको बताना न पड़े
जब भी तुम परेशान होती हो मैं परेशान होता हूँ
ढूंढ लेंगे वो अदब जिससे कुछ छिपाना न पड़े
आज भी तुमको उतना ही प्यार करते है 'पाली'
ढूंढ लेंगे वो वजह कि तुमको बताना न पड़े
ढूंढ लेंगे वो वजह कि तुमको बताना न पड़े
Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’
- Sher is of two lines with it’s own meaning
- Radeef is repeated at the end of the sher
- Behar is meter of sher
- Quafia is rhyming pattern of words
- Matla is 1st sher of a ghazal ending with radeef in both
- Maqta is pen-name of a shayer and used in the last sher of a ghazal
No comments:
Post a Comment