Tuesday 26 December 2017

A-254 तेरा मयकदा 18.3.17--10.24 AM

A-254 तेरा मयकदा 18.3.17--10.24 AM
तुमको देखकर अब बेवज़ह मुस्कुराना न पड़े 
तेरी मोहब्बत में अब कुछ और छिपाना न पड़े 

तेरा मयकदा छोड़ आये हैं तेरा शहर समझ
ढूंढ लेंगे एक नया शहर जहाँ दूर जाना न पड़े 

तेरी रस्मों में उलझ कर ही तो जुदा हुए हम
ढूंढ लेंगे ऐसी डगर जहाँ रस्म निभाना न पड़े 

बड़े मसरूफ रहे ज़िन्दगी भर तुमको मनाने में 
ढूंढ लेंगे ऐसी नाज़नीन जिसको मनाना न पड़े 

तेरे प्यार में दीवाना हुआ सब कुछ गवां बैठा 
ढूंढ लेंगे वो इकरार जहाँ कुछ गवांना न पड़े 

बड़ी शिद्दत से हम तेरे करीब आया करते थे 
ढूंढ लेंगे वो वजह जिससे करीब आना न पड़े 

बहुत भरोसा किया मैंने तुमको अपना समझ 
ढूंढ लेंगे वो जज़्ब जिससे अपना बताना न पड़े 

तुमने बहुत सारे वायदे किये थे साथ निभाने के 
ढूंढ लेंगे वो वजह जिससे तुमको निभाना न पड़े 

तुम सुन्दर हसीना हो इसका मुझे भी ग़रूर है   
ढूंढ लेंगे वो मोहब्बत जिसको बताना न पड़े 

जब भी तुम परेशान होती हो मैं परेशान होता हूँ 
ढूंढ लेंगे वो अदब जिससे कुछ छिपाना न पड़े 

आज भी तुमको उतना ही प्यार करते है 'पाली'
ढूंढ लेंगे वो वजह कि तुमको बताना न पड़े 

ढूंढ लेंगे वो वजह कि तुमको बताना न पड़े 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali’

  1. Sher is of two lines with it’s own meaning
  2. Radeef is repeated at the end of the sher 
  3. Behar is meter of sher
  4. Quafia is rhyming pattern of words
  5. Matla is 1st sher of a ghazal ending with radeef in both
  6. Maqta is pen-name of a shayer and used in the last sher of a  ghazal


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