Tuesday 26 December 2017

A-212 हाथों में कँगन 14.11.16—10.13 AM

हाथों में कँगन की होवत सजावट है 

छुटकी दुल्हनिया भी प्यारी लागत है 


करत बग़ावत है सबना के बतावत है 

कैसे गुस्सावत है कभी गीत गावत है 


मनमा ज्वार संग खुशियाँ अंबार लिए 

सोलह सिंगार किये कैसे इठलावत है 


जैसे कोई दुल्हनिया लागे शर्मावत है 

घूँघट में आपन मुखड़ा भी छिपावत है 


मनवा में का चले कोई का पता नहीं 

अन्दर का घूँघट काहे नहीं उठावत है 


काई जाने कैसन दर्द छिपाये दिल में 

खुद भी रोवत है सबना के रुलावत है 


मत कॅरियह बचपन मैं शादी हमरिअ 

बचपन मा बचपन कत्ल हो जावत है 


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

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