Thursday 28 December 2017

A-331 अश्क़ छू के निकले 7.9.17--6.44 AM

A-331 अश्क़ छू के निकले 7.9.17--6.44 AM

अश्क़ छू के जो निकले तेरे गालों को 
मुझे जलन होती मुझे मलाल होता है 
उसके पास इजाज़त है रोज़ आने की 
तेरा बुलाना मुझे कभी कभार होता है 

झुमके लपक कर तेरे गालों को छूएं 
झुमकों से उत्पन्न नया उन्माद होता है 
अकड़न तेरे झुमकों की सुभानल्लाह
आखिर मन हमारा तो विषाद होता है 

नाक जड़ी नथनिया का राज तुझपर 
जैसे कि राजा का द्वारपाल होता है 
दूर से ही खड़ा इतरा इतरा बात करे 
हमारा जीना दुभर बुरा हाल होता है 

तेरी कमरधन्नी लटके तेरी कमरिआ 
मत पूछो कि मेरा क्या हाल होता है 
तेरी कमर स्वांग लिपटे तो क्या कहूँ 
सौतन के आने जैसा बवाल होता है 

कर लो स्वांग थोड़ा करीब होने का 
मन अपने का शौर्य विशाल होता है 
तेरा भ्रम काफी है मेरे जीने के लिए 
खुशियों की पता नौनिहाल होता है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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