A-081 तेरी आँखों में 18-4-15 --4.40 AM
तेरी आँखों में झील की गहराई है
इसी में सारी दुनिया की ख़ुदाई है
जब कभी मैं इसमें उतर जाता हूँ
अतरंग विचारों में उलझ जाता हूँ
किस तल की मैं तुझसे बात करूँ
और कैसे मैं उसका इज़हार करूँ
हर तल में एक ख़ूबसूरत नज़ारा है
मंत्रमुग्ध किये देता इतना प्यारा है
हवा के झोंके भी यहाँ खूब आते हैं
मंद मंद बहते हैं बहा के ले जाते हैं
लाख कोशिश करो नहीं जाने की
नहीं मिलती विधि इनको मनाने की
कैसी खुशबू जो बांधे चली जाती है
कैसी अदा है जो इतना बलखाती है
कैसा झोंका है जो रोके रुकता नही
कैसी अँधेरी जो उड़ा के ले जाती है
यहाँ बादलों की दबिश भी भाती है
इंद्रधनुष की आभा भी सज जाती है
बारिश से अक्सर जो गुमां होता है
अपनेपन का एहसास जवां होता है
मिट्टी की ख़ुशबू जब यहाँ आती है
सोंधी सोंधी सी भनक जग जाती है
कोई हो के गया अभी ख़्याल करना
दबे पावों निकलना न बवाल करना
बहुत ही जल्दी चोट भी खा जाती है
सबकुछ भुला कर फिर मुस्कुराती है
बहुत सहनशीलता की परिचायक है
जैसे आगंतुक कोई बड़ा विनायक है
फूलों की बगिया करती रहनुमाई है
खूबसूरत डलिया भी सज आयी है
फूलों फूलों का एक ऐसा वास्ता है
जैसे मुस्काहट ज़िंदगी का रास्ता है
अपनी धुन में हर कोई गुनगुनाता है
जो कहना चाहता वही कह पाता है
टूटता मरता है फिर भी मुस्कुराता है
फूल ही है जो बहुत कुछ सिखाता है
एक आहट है जो दबे पाँव आई है
कहना चाहती है पर कह न पाई है
धीमी गति से मंद मंद मुस्कुराई है
फिर उसकी आँखें नम हो आयी है
जब एक कदम इसने भी उठाया है
उसने भी किसी को नहीं बताया है
नया भविष्य की उसने कल्पना की
कुछ कहा है कुछ सुनने में आया है
किस तल की मैं तुझसे बात करूँ
और कैसे मैं उसका इज़हार करूँ
हर तल में एक खूबसूरत नजारा है
मंत्रमुग्ध किये देता इतना प्यारा है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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