Monday 18 December 2017

A-337 न रहे ग़म 26.10.17—8.49 AM

A-337 न रहे ग़म 26.10.17—8.49 AM 

न रहे ग़म कोई न रहे कोई दास्ताँ 
तुम रहो हम रहें और रहे गुलिस्ताँ 
ख़ुशी के मंझर हों दीप जलते रहें 
रात अंधेरी हो सितारे मचलते रहें 

तारों की मचलना कैसा अजीब है 
रात भर जागे रहो उनका नसीब है 
जब कभी रात थोड़ी थक जाती है 
बेचारी कई हिस्सों में बँट जाती है 

हर पहर में होता अलग स्वभाव है 
फिर भी देखा नहीं कोई अभाव है 
करवटें बदलना भी उसका भाव है 
सुबह की बाट जोहना ही चाव है 

रात जब करवटें बदलती रहती है 
नींद और थकान भी सब सहती है 
रात को तारे जब भी टिमटिमाते हैं 
चांदनी बयार के बारे कह जाते हैं 

जुगनू भी देखे बहुत व्यस्त रहते हैं 
झिंगुर अपनी गीत में मस्त रहते हैं 
सर्प की कहानी भी तो कही जाती 
जब रात को मज़हबी मस्त रहते हैं 

ज़िंदगी हमारी भी इनसे मिलती है 
कुदरती रंग में रहे तो ही खिलती है 
मैंने जब से मैं संग होश सम्भाला है 
तभी बेड़ा ग़र्क हुआ वही घोटाला है 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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