Monday 29 January 2018

A-351 ज़हमत न उठाओ 29.1.18-7.05 AM

A-351 ज़हमत न उठाओ 29.1.18-7.05 AM 

ज़हमत न उठाओ क़रीब आने की 
मुझको भी प्यार जताना पड़ेगा 

तुमसे किया है प्यार कितना मैंने 
यह भी मुझको दिखाना पड़ेगा 

मेरे दर्द से अच्छी तरह वाक़िफ़ हो 
दर्द को सीने में छिपाना पड़ेगा 

तुमको पता है आने से हलचल होगी 
वहाँ कोई चक्र चलाना पड़ेगा 

मक़सद रख किसी को ख़बर न हो 
वर्ना सबकुछ मुझे बताना पड़ेगा 

तहज़ीब प्यार की इतनी उम्दा है 
प्यार तो मुझको निभाना पड़ेगा 

मेरी बाँहों में आकर गिर न जाना 
वर्ना तुझको उठाना पड़ेगा 

लोगों की निगाह बरबस जाएगी 
फिर तुमको भी शर्माना पड़ेगा 

फिर तुमको भी शर्माना पड़ेगा 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

A-099 क्यों मुस्कुराती हो 24-7-15—3.15 PM

A-099 क्यों मुस्कुराती हो 24-7-15—3.15 PM 

मुझे पता है कि तुम क्या चाहती हो
मुझे देख मन्द मन्द क्यों मुस्कुराती हो 
हर बात में अपनी हाँ क्यों मिलाती हो
दिल की बात मुझसे क्यों बताती हो

एक बार मिले थे जब सावन के मेले
बातचीत हुई थी बिलकुल थे अकेले 
आगोश में आकर मदहोश हो गई थी 
न कोई परवाह जैसे बेहोश हो गई थी 

पकडे गए थे रंग आता और जाता था
बड़ी फ़जीहत हुई हर कोई सुनाता था
न किसी ने सुना न कोई मौका ही दिया
सबने अपना फ़ैसला दे चौंका ही दिया 

प्यार जो पनपा अब जवां हो चला था 
सिलसिला थोड़ा मनचला हो चला था 
तूफ़ान दिल का दिल के क़ाबू नहीं था 
बेचैनी बहुत थी ज़लज़ला हो चला था 

सपने को हक़ीक़ी बनाना चाहता था 
बात बात पर मैं यूँ ही मुस्कुराता था 
बदलनी पड़े जो ज़िंदगी की डगर भी 
थोड़ा डरता था मग़र प्यार जताता था 

पवन तेरे होठों से जब छू कर आती थी 
तेरी शैतानी मुस्कान में बदल जाती थी 
तेरे चेहरे पर हया भी तो नज़र आती थी 
तुम तो फिर भी मन्द मन्द मुस्कुराती थी 

तुमने ही कहा था कि प्यार भी करती हो
सीने से लगकर कहा इकरार करती हो
प्यार से तुमने अपनी बाँहों में समेटा था
बिदक न जाऊं कुछ इस तरह लपेटा था

सीने से लगी जब नज़रों को मिलाया था 
एक बार तो दिल तेरा बहुत घबराया था 
दिल की बात भी तुमने तब ही बताई थी 
तुमको भी तो फिर बहुत शर्म आयी थी 

मुझे पता है कि तुम क्या चाहती हो

मुझे देख मन्द मन्द क्यों मुस्कुराती हो 

A-097 तुमने न देखा होता 7.6.15–5.18 AM

A-097 तुमने न देखा होता 7.6.15–5.18 AM 

तुमने न देखा होता हम कैसे करीब आते 
तेरे क़रीब आकर कैसे तुमको यह बताते 

कि दिल यह धड़कता है प्यार भी जताते 
तुम न शर्माए होते मेरी बाँहों में कैसे पाते 

इज़हार के बिना मोहब्बत भी बेकार होती  
न दिल बेक़रार होता न तुमको लुभा पाते 

तुम पराये न होते हम अपना किसे बनाते 
तुम ही छिप न जाते तो हम कैसे ढूंड पाते 

तुम ही दूर न जाते हम कैसे करीब आते 
तुम ही रूठे न होते भला हम कैसे मनाते 

घूँघट न किया होता तो हम कैसे उठाते 
इतने सुन्दर मुखड़े का स्पर्श कहाँ पाते 

ये हुस्न ही न होता नखरे कहाँ से आते 
निगाहों में तबस्सुम हया कहाँ से लाते 

तेरी हया का मंजर भला कैसे देख पाते 
खुद छिप रहे होते या हया को छिपाते 

श्वासों की सरगर्मी का तरन्नुम न होता 
जरा सोचो तुम भी कि हमको कैसे पाते 

होठों की कसमकस किस काम की होती 
अपने रसीले चुम्बनों से गर मुझे न लुभाते 

सुराहीदार गर्दन भी भला कैसे अकड़ती 
रूठने का सबब गर तुम मुझको दिखाते 

सुन्दर उभार न होता चुनरी कहाँ सजाते 
चुनरी उड़ाकर फिर हवा में कैसे लहराते 

असमंजस में हो तो होंठों में क्या दबाते 
मुखड़ा घुमा कर भला तुम कैसे शरमाते 

सुन्दर काया न होती मुझको क्या दिखाते 
सुन्दर सुनहरे गहने फिर कहाँ और सजाते 

सुन्दर नितम्ब न होते घाघरा कहाँ टिकाते
देखने वाले न होते तो घाघरा कहाँ नचाते

कलियों का घेरा किसको बना के दिखाते
किसके आँगन में कैसे तुम घूम घूम जाते

घुटनों के बल बैठकर तुम किसको लुभाते 
पायल ही न होती तो छन छन क्या बजाते 

नृत्य न होता तुम भला किसको कैसे नचाते 
जाम ही न होता तुम भला किसको पिलाते

शम्मआ ही न होती परवाने कहाँ से लाते 
हम ही न होते तो तुम प्यार किसपे लुटाते 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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Sunday 21 January 2018

A-119 शिकायतें 21.1.18--5.34 AM

A-119 शिकायतें 21.1.18--5.34 AM 

शिकायतें खुल के करो बग़ावती बात करो 
अपने दिल की सुनो खुल के इज़हार करो 

रह न जाये परदे के पीछे कुछ राज़ बनकर 
मत खामोश रहो उनका भी पर्दाफ़ाश करो 

निगाहों से देखो थोड़ी हक़ीक़त भी जानो 
थोड़ी सज़ग भी रहो खुद पे ऐतबार करो 

जमीं को कुरेदो न उँगिलयों की ज़हमत दो 
अपनी फाँसी का फंदा स्वयं न तैयार करो

तेरी खामोश निगाहें क्यों कर तड़प रहीं हैं 
इतनी ख़ामोशी भला कुछ तो विचार करो 

तेरे चेहरे की उदासी व तेरे होंठो की कम्पन
यूँ अरमानों को साथ न तुम खिलवाड़ करो 

उलझे हुए गेसुओं संग उलझे तुम भी कहीं 
आँखों में नमीं के आने का न इंतज़ार करो 

पीछे मुड़ मुड़ के देखना दर्शाता है तेरी तड़प 
एक तोहमत है यह कह दो इक़रार तो करो 

हर मुलाकात बनी एक उल्फत एक तोहफा 
मिलने की रस्म अदा कर अब न इंकार करो 

तेरी हर मुलाकात एक ज़ज़्बा है प्यार का  
मत रोको इसे आने दो फिर से प्यार करो 

जो दिल में आता है उसे कह दे मुख पर मेरे 

तमाचा न सही बातों का थोड़ा इज़हार करो 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-111 वो रात भला 17.7.15—5.58 AM


A-111 वो रात भला 17.7.15—5.58 AM  

वो रात भला कैसे सम्भलती, जब तू चादर ओढ़ निकलती 
बर्फ़ में ढकी तेरा नीर निगाहें, अंतरंग होकर निकलती आहें 

बर्फों से ढके हुए नरम उरोज, कहाँ दिखते, अब हमको रोज़ 
छाती इनकी जो आये कसाव, कैसे न बने नदिया का बहाव 

इंतज़ार रहा भर रात तबस्सुम, कभी तुम मिले कभी हम तुम 
कभी घोर अँधेरा, कभी चाँदनी, कभी तूफान, कभी शोर रागिनी

हवा के बुल्ले, ठिठुरे बदरीआ, बिजली चमके, रोश नज़रिआ 
बारिश भी जब लगे उमड़िआ, किसकी छाती कैसी चुनरिआ 

डूबे चाँदनी नर्म उरोज़, तरन्नुम बहके कदमवा लागा कुमकुम 
सीने का उभार में कसम कस, बहत रहा उरोज़ों से कोई रस 

नदियों के बहाव का झुकाव, उथलपन ही उसका स्वभाव 
उसकी मस्ती उसका ही चाव, हो जाता नदिया का बिखराव 

उछल-उछल कर करे सिंगार, जवानी की हदें करनी हों पार 
एक पाँव यहाँ, दूजा गिरे वहॉं, नहीं रखता कोई ऐसे में जहाँ 

बल खाकर बिखेरे वो अदाएं हसती हसाती छेड़ कर जाएं 
बिखेर डाले वो अपनी ओढ़नी, जैसे खुश होकर नाचे मोरनी 

कूद फांदती व छलाँगें मारती, गिरी कि गिरी फिर भी भागती 
न रूकती न उसको रोके कोई, जागती रही सारी रात न सोई 

हर पत्ता कैसे चाँदनी को चुराए, कैसे सबको हर बात वो बताए
चाँदनी रातों में एक साथ रहते, सर्दी गर्मी मिल दोनों ही सहते 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

Thursday 18 January 2018

A-348 नहीं लगता 16.1.18--8.24 AM

A-348 नहीं लगता 16.1.18--8.24 AM 

नहीं लगता मुझे कुछ और बाक़ी है 
ख़ुद को समझने समझाने के लिए 
कि हमें कुछ और भी करना पड़ेगा 
कुछ खोने और कुछ पाने के लिए 

नहीं मनस्सर किसी दर्द का होना 
छिपने और छिपाने की कला पर 
महसूस करना कराना ही बहुत है 
हो रहे दर्द को लिवा लाने के लिए 

परस्पर सम्बंध अलबत्ता काफ़ी हैं 
ज़िंदगी बसर और बसाने के लिए 
हम यूँ ही नहीं तुम्हें उमदा कहते हैं 
वो गुण हैं जो लगें रिझाने के लिए 

कुछ भी नहीं है दिखने दिखाने को 
मन की अवस्था है ज़माने के लिए 
स्वयं को समझना सबसे जरुरी है 
उनको अपने करीब लाने के लिए 

तुम में कोई नुक़्स नहीं न परेशां हो 
ये बातें तो हैं सिर्फ़ जताने के लिए 
तुम हमेशा ही जिद्द करते आए हो 
अक्सर  कुछ न कुछ पाने के लिए 

जीवन का निर्वाह बहुत आसान है 
ज़िन्दगी और बेहतर बनाने के लिए 
बस केवल सुनना ही आना चाहिए 

अब समझने और समझाने के लिए 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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