Monday 29 January 2018

A-097 तुमने न देखा होता 7.6.15–5.18 AM

A-097 तुमने न देखा होता 7.6.15–5.18 AM 

तुमने न देखा होता हम कैसे करीब आते 
तेरे क़रीब आकर कैसे तुमको यह बताते 

कि दिल यह धड़कता है प्यार भी जताते 
तुम न शर्माए होते मेरी बाँहों में कैसे पाते 

इज़हार के बिना मोहब्बत भी बेकार होती  
न दिल बेक़रार होता न तुमको लुभा पाते 

तुम पराये न होते हम अपना किसे बनाते 
तुम ही छिप न जाते तो हम कैसे ढूंड पाते 

तुम ही दूर न जाते हम कैसे करीब आते 
तुम ही रूठे न होते भला हम कैसे मनाते 

घूँघट न किया होता तो हम कैसे उठाते 
इतने सुन्दर मुखड़े का स्पर्श कहाँ पाते 

ये हुस्न ही न होता नखरे कहाँ से आते 
निगाहों में तबस्सुम हया कहाँ से लाते 

तेरी हया का मंजर भला कैसे देख पाते 
खुद छिप रहे होते या हया को छिपाते 

श्वासों की सरगर्मी का तरन्नुम न होता 
जरा सोचो तुम भी कि हमको कैसे पाते 

होठों की कसमकस किस काम की होती 
अपने रसीले चुम्बनों से गर मुझे न लुभाते 

सुराहीदार गर्दन भी भला कैसे अकड़ती 
रूठने का सबब गर तुम मुझको दिखाते 

सुन्दर उभार न होता चुनरी कहाँ सजाते 
चुनरी उड़ाकर फिर हवा में कैसे लहराते 

असमंजस में हो तो होंठों में क्या दबाते 
मुखड़ा घुमा कर भला तुम कैसे शरमाते 

सुन्दर काया न होती मुझको क्या दिखाते 
सुन्दर सुनहरे गहने फिर कहाँ और सजाते 

सुन्दर नितम्ब न होते घाघरा कहाँ टिकाते
देखने वाले न होते तो घाघरा कहाँ नचाते

कलियों का घेरा किसको बना के दिखाते
किसके आँगन में कैसे तुम घूम घूम जाते

घुटनों के बल बैठकर तुम किसको लुभाते 
पायल ही न होती तो छन छन क्या बजाते 

नृत्य न होता तुम भला किसको कैसे नचाते 
जाम ही न होता तुम भला किसको पिलाते

शम्मआ ही न होती परवाने कहाँ से लाते 
हम ही न होते तो तुम प्यार किसपे लुटाते 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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