Monday 29 January 2018

A-351 ज़हमत न उठाओ 29.1.18-7.05 AM

A-351 ज़हमत न उठाओ 29.1.18-7.05 AM 

ज़हमत न उठाओ क़रीब आने की 
मुझको भी प्यार जताना पड़ेगा 

तुमसे किया है प्यार कितना मैंने 
यह भी मुझको दिखाना पड़ेगा 

मेरे दर्द से अच्छी तरह वाक़िफ़ हो 
दर्द को सीने में छिपाना पड़ेगा 

तुमको पता है आने से हलचल होगी 
वहाँ कोई चक्र चलाना पड़ेगा 

मक़सद रख किसी को ख़बर न हो 
वर्ना सबकुछ मुझे बताना पड़ेगा 

तहज़ीब प्यार की इतनी उम्दा है 
प्यार तो मुझको निभाना पड़ेगा 

मेरी बाँहों में आकर गिर न जाना 
वर्ना तुझको उठाना पड़ेगा 

लोगों की निगाह बरबस जाएगी 
फिर तुमको भी शर्माना पड़ेगा 

फिर तुमको भी शर्माना पड़ेगा 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

2 comments:

  1. एक और बेह्तरीन नज़्म
    शुरिया मेरा आदाब क़बूल करें

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  2. Thanks again for your inspiring comments! Gogia

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