बड़ी रूह से बरबस सजाये बैठे हैं
तख़्त पर हर चीज़ लगाये बैठे हैं
जिनको देख फ़िदा हो जाये यार
हम वो हर तरतीब लगाये बैठे हैं
हमने तो आँगन भी सजा रखा हैं
मस्ती में नज़रों को गड़ा रखा हैं
आना हैं आज मेरे हमदम यार ने
हमने ठिकरी पहरा लगा रखा हैं
बड़ी उम्दा है मेरी जान ए हमनशीं
हम तो सोच के ही इतराये बैठे हैं
कैसे गुजारें ये पल अब तू ही बता
हम तो पल पल को सजाये बैठे हैं
नज़रों को ड्योढ़ी पे लगाए बैठे हैं
हाँथों में गुलदस्ते को उठाये बैठे हैं
आई तो सही पर सिर्फ एक खबर
आ नहीं सकते तिलमिलाये बैठे हैं
पता नहीं क्या मज़बूरी रही होगी
किस पतझड़ के भाव सही होगी
कितने अरमानों को कुचला होगा
कितनी बातों की बनी बही होगी
न आओ मगर तुम सलामत रहो
मेरे दिल में हो मेरी क़यामत रहो
दिल का सकून जरुरी है जानम
चाहे मुझ में रहो या खुद में रहो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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Great.Very well composition.
ReplyDeleteThank you so much! Sangha Saheb!
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