जमघट वो बनाये बैठे हैं
कैसे वो मुस्कुराये बैठे हैं
ड्योढ़ी मैं कैसे पार करूँ
तुमसे मैं कैसे प्यार करूँ
तेरे बिना कुछ जँचता नहीं
रंग बिना कुछ फ़बता नहीं
कैसे भला स्वीकार करूँ
तुमसे मैं कैसे प्यार करूँ
तेरी बाँहों में मुझे सकूं मिले
तेरे दिल में अपनी रूह मिले
तेरी बाँहों का घेरा पार करूँ
तेरे दिल पे सौ सौ वार करूँ
तुम मेरे इतने करीब है
खुद पे कैसे ऐतबार करूँ
दिल करता बाँहों में ले लूँ
नाचूँ गायूँ और प्यार करूँ
सदियों से चलन आयी है
सैयां है तो तन्हाई है
रतिआ कैसे मैं पार करूँ
तुमसे मैं कैसे प्यार करूँ
क्यों न आलिंगनबद्ध होकर
तेरे नयनों में विस्तार करूँ
जी भर के नयनों से खेलूं
जी भर के नयनां चार करूँ
बारिश के इस मौसम संग
जी भर के दुराचार करूँ
अंग अंग मेरा टूट रहा
भींगी चोली का मिज़ाज पढ़ूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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