रखो महफ़ूज़ ज़ख़्मों को बहुत काम आएँगे
अपने और ग़ैरों का फ़र्क़ तुमको समझाएँगे
छेड़ो न इनको आतुर होते है दर्द दिखाने को
थोड़ा भी उलझ गए तो बहुत नीर टपकायेंगे
रखो महफ़ूज़ ज़ख़्मों को बहुत काम आएँगे
कितना कमजोर कर देते हैं तुमको बताएँगे
इनके रहते हुए तुम खुश भी नहीं रह सकते
उदासी का हर एक सबब तुमको सिखायेंगे
रखो महफ़ूज़ ज़ख़्मों को बहुत काम आएँगे
अपनों को अपनों के करीब भी न रहने देंगे
रिश्तों में दूरी परस्पर बना कर दिखलायेंगे
आपको आप से छीन कर खुद छिप जायेंगे
रखो महफ़ूज़ ज़ख़्मों को बहुत काम आएँगे
ज़िंदगी का जीना हराम कर के दिखलायेंगे
तमन्नाओं का गला घोटना भी खूब आता है
ज़िन्दों को ज़िन्दा मुर्दा बता कर समझाएंगे
रखो महफ़ूज़ ज़ख़्मों को बहुत काम आएँगे
नर्क स्वर्ग का हिसाब भी यह ख़ूब रखते हैं
खुद ही नर्क और कभी स्वर्ग बन ये जायेंगे
बीच का रास्ता भी नहीं है खुद जी जायेंगे
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
You can also visit my other blogs
Hindi
Poetry Book-“Meri Kavita Mera Sangam” Available at
Snap Deal
Very good.
ReplyDelete