A-099 क्यों मुस्कुराती हो 24-7-15—3.15 PM
मुझे पता है कि तुम क्या चाहती हो
मुझे देख मन्द मन्द क्यों मुस्कुराती हो
हर बात में अपनी हाँ क्यों मिलाती हो
दिल की बात मुझसे क्यों बताती हो
एक बार मिले थे जब सावन के मेले
बातचीत हुई थी बिलकुल थे अकेले
आगोश में आकर मदहोश हो गई थी
न कोई परवाह जैसे बेहोश हो गई थी
पकडे गए थे रंग आता और जाता था
बड़ी फ़जीहत हुई हर कोई सुनाता था
न किसी ने सुना न कोई मौका ही दिया
सबने अपना फ़ैसला दे चौंका ही दिया
प्यार जो पनपा अब जवां हो चला था
सिलसिला थोड़ा मनचला हो चला था
तूफ़ान दिल का दिल के क़ाबू नहीं था
बेचैनी बहुत थी ज़लज़ला हो चला था
सपने को हक़ीक़ी बनाना चाहता था
बात बात पर मैं यूँ ही मुस्कुराता था
बदलनी पड़े जो ज़िंदगी की डगर भी
थोड़ा डरता था मग़र प्यार जताता था
पवन तेरे होठों से जब छू कर आती थी
तेरी शैतानी मुस्कान में बदल जाती थी
तेरे चेहरे पर हया भी तो नज़र आती थी
तुम तो फिर भी मन्द मन्द मुस्कुराती थी
तुमने ही कहा था कि प्यार भी करती हो
सीने से लगकर कहा इकरार करती हो
प्यार से तुमने अपनी बाँहों में समेटा था
बिदक न जाऊं कुछ इस तरह लपेटा था
सीने से लगी जब नज़रों को मिलाया था
एक बार तो दिल तेरा बहुत घबराया था
दिल की बात भी तुमने तब ही बताई थी
तुमको भी तो फिर बहुत शर्म आयी थी
मुझे पता है कि तुम क्या चाहती हो
मुझे देख मन्द मन्द क्यों मुस्कुराती हो
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