A-092 पता नहीं तुमको ..16.2.16—9.55 PM
पता नहीं तुमको
कभी भूल पाऊँगा भी कि नहीं
कितना मुनासिब है
ये समझ पाऊँगा भी कि नहीं
एक अदद मुलाकात की तलब
पता नहीं बिन तेरे
कभी मुस्कुरा पाऊँगा भी कि नहीं
उसकी नज़र कभी उतार पाऊँगा भी कि नहीं
पता नहीं ये जज्बात किस काम के हैं
तेरे रुख़्सार पे वो काला सा तिल
कभी छू पाऊँगा भी कि नहीं
उन रास्तों पर कभी पहुँच पाउँगा भी कि नहीं
तूँ न सही मगर तेरी यादों के संग
कभी रह पाऊँगा भी कि नहीं
तेरे लिए बहुत आसान हो सकता है मगर इस दर्द को
कभी सह पाऊँगा भी कि नहीं.......
कभी सह पाऊँगा भी कि नहीं
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
Subhan Allah ... Kya bhoob...
ReplyDeleteSubhan Allaah! Kya baat hai! Thanks
Deleteये जज़्बातों का सफर जारी रखने के लिए सुक्रिया
ReplyDeleteदो रोज़ तुम मेरे पास रहो.. दो रोज़ मैं तुम्हारे पास रहुं.. चार दिन की ज़िन्दगी है.. ना तुम उदास रहो.. ना मैं उदास रहुं….