Tuesday 16 February 2016

A-092 पता नहीं तुमको ..16.2.16—9.55 PM


A-092 पता नहीं तुमको ..16.2.16—9.55 PM

पता नहीं तुमको 
कभी भूल पाऊँगा भी कि नहीं
कितना मुनासिब है 
ये समझ पाऊँगा भी कि नहीं
एक अदद मुलाकात की तलब 
पता नहीं बिन तेरे 
कभी मुस्कुरा पाऊँगा भी कि नहीं

लाख चेहरों में एक चेहरा तुम्हारा भी है
उसकी नज़र कभी उतार पाऊँगा भी कि नहीं
पता नहीं ये जज्बात किस काम के हैं
तेरे रुख़्सार पे वो काला सा तिल 
कभी छू पाऊँगा भी कि नहीं

तेरी मंजिल और रास्ते दोनों अलग हैं 
उन रास्तों पर कभी पहुँच पाउँगा भी कि नहीं
तूँ न सही मगर तेरी यादों के संग 
कभी रह पाऊँगा भी कि नहीं
तेरे लिए बहुत आसान हो सकता है 
मगर इस दर्द को 
कभी सह पाऊँगा भी कि नहीं....... 
कभी सह पाऊँगा भी कि नहीं

Poet; Amrit Pal Singh Gogia

3 comments:

  1. Subhan Allah ... Kya bhoob...

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  2. ये जज़्बातों का सफर जारी रखने के लिए सुक्रिया

    दो रोज़ तुम मेरे पास रहो.. दो रोज़ मैं तुम्हारे पास रहुं.. चार दिन की ज़िन्दगी है.. ना तुम उदास रहो.. ना मैं उदास रहुं….

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