A-175 उन लम्हों के संग 19.2.16—4.24 AM
उन लम्हों के संग जीने का मजा अपना है
जिन लम्हों में तेरा चित्र और मेरा सपना है
आज भी याद है वो तेरा थोड़ा सा शर्माना
कभी दूर भागना कभी आकर लिपट जाना
बाँहों में सिमटी कभी मौन कभी मुस्कुराना
चुम्बनों की बौछारों के संग तूने बरस जाना
जैसे बर्फ की चट्टानें और गुफा का मुहाना
श्वासों का रुकना कभी उनका लौट आना
ओलों का गिरना जैसे मौसम का हो तांडव
वो गोलों का तांडव जैसे कौरव और पांडव
वो पहाड़ों के टीलों के पीछे आसमान नीले
घंटों हरी घास पर हम लेटे एकदम अकेले
झरनों का शोरगुल वो बहकता हुआ पानी
तुम्हारी वो छींटा कशी तेरा अंदाज़ नूरानी
मचले दरिया का पानी करे अपनी मनमानी
तेरा आलिंगन सुनाये कुछ ऐसी ही कहानी
दूर सुनहरा पानी रवि से करता कोई कहानी
तेरा उड़ता हुआ पल्लू दिखाए अपनी जवानी
पल्लू भी तेरा उड़ उड़के अपनी मंशा बताये
कब मौका मिले और जाने कब लिपट जाये
आओ आज मिल बैठें उसी आसमान के तले
जहाँ तारों का झुरमुट था प्यार के बीज़ पले
जहाँ चाँदनी हो चाँदनी का ही मधुर संगीत हो
न कोई गिला न कोई शिक़वा न कोई रीत हो
बस मैं रहूँ तू रहे और हमारा मीत हो...
बस मैं रहूँ तू रहे और हमारा मीत हो...
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
Beautiful relationship and words for ..!!!
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