ऐ मेरे मन!
कैसी उदासी व कैसा प्रसंग
तन्हा होगी ज़िंदगी या उमंग
ज़िंदगी के अपने ही तरीके
अपने चाव ख़ुद रंग सरीखे
धूप छाँव का यह खेल है
गिलों शिकवों का मेल है
जब मन में रहती हो उमंग
शिकवे भी रह लेते हैं संग
हर लम्हा ज़िंदगी आती है
हसती है और मुस्कुराती है
हर बात समझ में आती है
फिर तेरी मेरी भी भाती है
मन में ठहरे जो बैराग कहीं
ज़िंदगी का हो विनाश वहीँ
हर बात फिर जैसे सताती
पकड़ भी मजबूत हो जाती
अंग-अंग दहकने लगता है
आंसूओं का ढेर लगता है
मुकद्दर है ज़िंदगी का, जो कुछ अपने हुए
अपने हैं इसीलिये शिकवे और सपने हुए
गिलों शिकवों के बीच ज़िंदगी का सार है
सपने हैं तो साकार हैं, और वही तो प्यार है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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