आज तेरी याद बहुत आयी रे
14.6.16—6.21 AM
आज तेरी बहुत याद आयी रे
तेरी रुखसत ने दी मुझे तन्हाई रे
तेरे जीने में मैं जीना ढूंढ़ता रहा
अब किसकी पकडू मैं कलाई रे
किन गलियों में जायूँ ढूँढूं मैं तुझे
हर गली में दिखे अपनी परछाई रे
आजा बलमा और न सता मुझको
सही न जाये मुझसे तेरी विदाई रे
आखों के नीर मोती बन आये हैं
तेरी यादों ने बजाई खूब शहनाई रे
एक एक पल यूँ गुजरा इनके संग
जैसे इन्हीं से हुई हो मेरी सगाई रे
तेरे जेहन में छिपा है दिल मेरा
यह बात तुमने सबसे छुपाई रे
तूँ भी अकेली कैसे रह पाएगी
फिर यह बात कैसे बन आयी रे
खुद को खुद से छिपाती होगी
छिपाती होगी अपनी तन्हाई रे
दिल मेरा भी तो धड़कता होगा
तुमने कैसे की इनकी अगवाई रे
याद तो तुम्हें भी आते होंगे वो पल
तुमने भी तो बजाई थी शहनाई रे
मैं भी तो उन्हीं को संजोए बैठा हूँ
तुमने कैसे की होगी हमारी रुस्वाई रे
आज तेरी याद बहुत आयी रे
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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