Wednesday 29 June 2016

A-087 देखा है इनको 26.4.16—10.15 AM

A-87 देखा है इनको 26.4.16—10.15 AM 

गरीब गुरबों की क्या बात करूँ 
न तो हैवानों में आते हैं 
न इंसानों में आते हैं 
बीच का सफर इनके बस का नहीं 
मुकद्दर के ज़िक्र में समा जाते हैं 

देखा है इनको सड़कों पर छाते हुए 
झोपड़-पट्टी कुटिया बनाते हुए 
सारा परिवार उसी में छिप जाता है 
कुटुम्बों को भी देखा इनके घर आते हुए 
मिलकर जश्न मनाते हुए 
चेहरों को मुस्कुराते हुए 

देखा है इनके बच्चों को 
जोश ख़रोश में बैठे हैं 
बच्चों की रेल बनाते हुए 

छुक-छुक करती भाग गयी 
बिना ईंजन के भगाते हुए 
फिर भी खिलखिलाते हुए 
पूरा शोर मचाते हुए 
अपना हक़ जताते हुए 

देखा है इनको
पर्व त्यौहार जश्न मनाते हुए 
ख़ूब हुड़दंग मचाते हुए 
ढोल-पीपे बजते हैं  
नाचते हुए नचाते हुए 
प्रभु के गुणगान करते हैं 
होली का रंग दिखाते हुए 
पूरी मस्ती में आये हुए 
बिना रंग के भी हर रंग उड़ाते हुए 

देखा है इनको 
अपने दर्द छुपाते हुए 
औरों के काम आते हुए 
अपना बोझ उठाये हुए 
औरों का बोझा उठाते हुए 
अपनी पीड़ा सहकर भी 
औरों की पीड़ा मिटाते हुए 
अपने जख़्मों को भूलकर 
औरों के जख़्म सहलाते हुए


देखा है इनको 
चिथड़ों से तन को छिपाते हुए 
खुले में नग्न रहते हैं 
कुत्तों के संग नहाते हुए 
तालाब में डुबकी लग गयी 
बिना ऐतराज़ जताते हुए 

नागरिक होने का अधिकार है इनका 
अपना भरोसा भी जताते हुए 
नेताओं को अपना बताकर 
अपना वर्चस्व दिखाते हुए 
उनके आँसू भी पी लेते हैं 
उनसे हाथ मिलाते हुए 
उनकी एक मुस्कान पर भरोसा
ख़ुद को उनका बताते हुए 

देखा है इनको 
जीवित हैं पर दुःख को छिपाते हुए 
कैसे रहते होंगे फिर भी मुस्कुराते हुए
मेरा भारत महान की परिभाषा कौन जाने 
फिर भी मेरा भारत महान के नारे लगाते हुए 
…………………………नारे लगाते हुए


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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