Saturday 4 June 2016

A-144 हाँ..! तुम अंधे हो 3.6.16—8.18 AM

हाँ..! तुम अंधे हो 3.6.16—8.18 AM

हाँ..! तुम अंधे हो!
तुमको दिखता नहीं है!
तुम हो के चढ़े रहे हो
सारा वजन मुझपे बना रहे हो

अच्छी भली पंक्ति लगी है
बीच में ही घुसे जा रहे हो
व्यवस्था भी है दिखती नहीं
खुद को शातिर बता रहे हो

पूजा करनी है तो पूजा करो
हमें क्यों दुविधा में डाल रहे हो
प्रसाद चढ़ाना है तो चढ़ाओ
इतनी क्यों जल्दी मचा रहे हो

आँखें मूँद बगुला बने बैठे हो
दूसरों को गुस्सा दिला रहे हो
दर्शन की कितनी जल्दी है
जैसे प्राण ही छूटे जा रहें हो

पंडित को भी तंग कर रखा है
आगे ही आगे घुसे जा रहे हो
दूसरों के संग धक्का करते हो
आँखें बंद कर मौज मना रहे हो

बाहर आकर बड़े दावे करते हो
खुद को बड़ा चतुर बता रहे हो
जरा देखना अपना छल कपट
छोड़ने आये थे लेकर जा रहे हो

घर से निकले शर्द्धा सुमन संग
लोगों की कहानी सुना रहे हो
लेने आये थे माँ का आशीर्वाद
एक और कहानी लेकर जा रहे हो

सारे रास्ते अब वही डींगे मारोगे
कि तुम क्या लेकर जा रहे हो
समर्पण करना कुछ छोड़ना था 
और भी अहम लेकर जा रहे हो

 Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"


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