Monday, 20 June 2016

A-135 वही सुहाग रात है 21.3.16—7.36 AM


वही सुहाग रात है 21.3.16—7.36 AM

बहुत अच्छे दिन जो हमने गुजारे हैं
न कभी हम जीते हैं न कभी हारे हैं
जिंदगी में कठिनाइयाँ भी खूब रहीं 
हर काम वैसे के वैसे ही निपटारे हैं

सूखी गीली हमने सब स्वीकार किया
उसे अपनाकर उसी का मनुहार किया
तेरा किया मीठा लागे जानकर जिए 
उसी में जिंदगी का भी विस्तार किया

बड़े खूबसूरत दिन थे जो गुजारे हैं
कहाँ मिलते हैं मिले जो सहारे हैं
खुद रहता वो चढ़दी कला में है
फिर हम कैसे हो सकते बेचारे है

प्रभु ने जो खेल दिया जिंदगी में
हम तो केवल उसी के सहारे हैं
उसने जो दिया वही पसंद रहा
हमने हर पल उसी में सवारे हैं

वो मेरे संग है और मैं उसके संग हूँ
एक दूसरे के पूरक हैं वही उमंग हूँ

उसने मुझे पुकारा मैं भी आ गया हूँ
वो गले लगाना चाहे ये भी पा गया हूँ

हर रोम में बसी उसकी हर वो मुलाक़ात है
उससे मिलना है "पाली" वही सुहाग रात है
……………………वही सुहाग रात है


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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