Tuesday, 21 June 2016

A-010 मेरा संगीत हो 22.6.16—4.35 AM

A-010 मेरा संगीत हो 22.6.16—4.35 AM

जिंदगी के कुछ छणों को बेशक उधार लो 
बहुत ज्यादा न सही बेशक कभी कभार लो 

जिंदगी के उन लम्हों को फिर से नितार लो 
बनती तस्वीरों से बनी एक लम्बी कतार लो

वो पहाड़ों के टीले वो आसमान नीले
घंटों हरी घास पर लेटे एकदम अकेले

वो बर्फ की चट्टानें पड़ी गुफा के मुहाने
कहती हैं दास्ताँ मौसम कितने थे सुहाने

झरनों का शोरगुल वो बहकता पानी
तुम्हारी छींटा कशी वो अंदाज़ नूरानी

दरिया का पानी करे अपनी मनमानी
आलिंगन वो तेरा सुनाये सारी कहानी

सुनहरा पानी रवि से करता हो कहानी
पेड़ों की छाँव तले फुदकती हो जवानी

पल्लू तेरा उड़ उड़ के सब कुछ समझाए
कसकती जवानी धीरे धीरे मंशा जताये

आओ मिल बैठें उसी आसमान के तले
जहाँ तारे हों चांदनी हो बादल हों भले

न कोई गिला कोई शिकवा न रीत हो
बस एक मैं रहूँ तुम रहो मेरा संगीत हो
……....मैं रहूँ तुम रहो मेरा संगीत हो

Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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