एक शीशा चरमराया
कुछ समझ नहीं आया
हमने तो बल्ला घुमाया
शीशा फिर कहाँ से आया
कड़कती हुई आवाज़ गुर्राई
हमने भाग कर जान बचाई
तभी मम्मी की आवाज आई
करनी नहीं है तुमने पढ़ाई
हमने फिर से दौड़ लगाई
जब मैंने गुल्ली उछलाई
फिर जा शीशे से टकराई
तिड़कने की आवाज़ आई
हमने फिर से दौड़ लगाई
लेनी पड़ी खेलों से विदाई
अगले दिन एक नया खेल खेला
लग गया देखने वालों का मेला
फुटबॉल को एक किक दे मारी
बोलना पड़ा अंकल जी को सॉरी
अगले दिन फिर किया गुज़ारा
अपने सभी दोस्तों को पुकारा
गुल्ली क्या उड़ी, उड़ गया साला
एक का उसने सिर फाड़ डाला
वो चौका वो छक्का वो मारा
देश आज़ाद हो गया हमारा
कहते हैं देश आज़ाद हो गया
मैंने कहा सब बर्बाद हो गया
खेलने की आज़ादी तो है नहीं
बोलो मैंने ग़लत बोला कि सही
देश आज़ाद हो गया
लेकिन अन्य मायनों में
नेता आज़ाद हैं
अपराधी से गाँठ हैं
डॉक्टर आज़ाद हैं
दवाओं की बन्दर बाँट हैं
शिक्षण संस्थाएं आज़ाद है
व्यापारिओं के साथ हैं
कानून रक्षक आज़ाद हैं
अवसाद बनाने के लिए
सरकारी अदारे आज़ाद हैं
उनकी मनमानी के लिए
पुलिस विभाग आज़ाद हैं
अपराधियों की शरण गाह हैं
अगर कोई आज़ाद नहीं हैं तो
वो केवल एक आम इंसान हैं
वो केवल एक आम इंसान हैं
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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