Wednesday 22 June 2016

A-134 वर्ना बत्ती गुल 22.6.16—6.00 AM


वर्ना बत्ती गुल 22.6.16—6.00 AM

किसी को अपना न बनाये कोई
दिल के हालात न बताये कोई
सच भी झूठा है इस दुनिया में
सच पर भरोसा न बनाये कोई
वर्ना बत्ती गुल.....................

कौन सा सच..
कि तुम किसी से प्यार करते हो
बार बार उसका इजहार करते हो
किसी पे अपनी जान छिड़कते हो
उसकी याद में बार बार मरते हो
बिछुड़ जाने के लिए तैयार रहना
वर्ना बत्ती गुल.....................

शर्मो हया का पहरा भी झूठा है
किया गया इजहार भी अनूठा है
परदे पीछे एक शख्श छिपा है 
बहुत प्यारा है पर देखो रूठा है
जान जाओ फरेब से रिश्ता तुम 
वर्ना बत्ती गुल.....................

जिनके लिए जान की बाजी लगाते थे
आज वही तेरे सर पे चढ़ कर भगाते हैं
समझ आ जाये गर चाणक्य की नीति 
उसने लिखी है उसकी अपनी आपबीती
मंद बुद्धि भोलेपन का दिखावा बंद कर
वर्ना बत्ती गुल.....................

तुम जिसको भी अपना बनाये बैठे हो
पिता पुत्र एक दूसरे को सजाए बैठे हो
पति पत्नी बन के तुम इठलाये बैठे हो
दोस्तों की जमात इतनी जुटाए बैठे हो

इनमें से एक भी तुम्हारा अपना नहीं है
समझ में आ जाये तो किस्मत वाले हो
वर्ना बत्ती गुल.....................

एक शख्श है बस केवल तुम्हारा है
तुम्हारा ही रहा कभी भी नहीं हारा है
खुद जीत कर तुमको ही जिताता है
वो वही है जो हर पल काम आता है

वो है तुम्हारा अपना दिया हुआ "शब्द"
निर्बिघन वो तेरे सारे काम करवाता है
बात समझ आये तो समझ ले "पाली"
उसके बिना तो हर इंसान हार जाता है

वही एक सच है समझ आयी कि नहीं
वर्ना बत्ती गुल.....................


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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