अजी सुनते हो! 18.6.16—7.00 AM
अजी सुनते हो!
कहाँ सुनते हो
बोल बोल के थक गयी हूँ
अापके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती
खाक सुनते हो
बोलती मैं कुछ और हूँ
सुनते कुछ और हो
फिर झगड़ा भी करते हो
कि मैंने यह नहीं कहा
वह कहा था
मैं जानता हूँ!
कि आखिर तुम क्या कहना चाहती हो
तुम कुछ भी बोलो
मुझे पहले से पता है
कि तेरे कहने का मतलब क्या है
तुम मुझे उल्लू नहीं बना सकती
तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारी है मैने
मैंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं
हाँ बोलो
अब क्या कहना चाहती हो
अब बोलो भी सही
या अब मौन व्रत रखने का इरादा है
मुझे पता है अब तूँ क्या कहने वाली है
अाँखों में वही पुराने अाँसू
थोड़ी देर मौन व्रत फिर
वही राम कहानी
हाँ हाँ मै तो पागल हो गयी हूँ
कुछ भी बोले चली जाऊँगी
तुम मुझे बहुत तंग करने लगे हो
मै मायके चली जाऊँगी
भाई को सब कुछ बताऊँगी
कि तुम मेरी अब बिल्कुल भी नहीं सुनते हो
तुम्हारी जिंदगी में जरूर कोई और अा गयी है
हे भगवान!
तुम्हारा दिमाग भी कहाँ से कहाँ चलता है
अच्छा बाबा मुझे माफ कर दो
ये कान पकड़े
मै तो सिर्फ इतना कहना चाहती थी
और मै अापको बहुत प्यार करती हूँ
लेकिन अाप हो कि सुनते ही नहीं हो
……. अाप हो कि सुनते
ही नहीं हो !
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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