Saturday 9 April 2016

A-019 हाथ क्यूँ छुड़ाते हो? 10.4.16—5.00 AM



हाथ क्यूँ छुड़ाते हो 
दूर भी नहीं जाते हो 
क्यूँ अश्क बहाते हो 
गले भी लग जाते हो 

क्यूँ मुखड़ा छुपाते हो 
करीब भी तो आते हो 
इतने वार क्यूँ करते हो 
प्यार भी तो जताते हो 

मुझसे कैसा शर्माना 
नज़रें भी तो मिलाते हो 
नजरें झुका के क्या फायदा 
खुद ही समा भी जाते हो 

मुझसे क्या छुपाना 
खुद ही चले आते हो 
हर बात जहन में छिपी 
इक इक करके बताते हो 

दूर भला जाने से क्या फायदा 
सीने से खुद ही तो लग जाते हो 
नज़रें घूमाने से भी क्या फायदा 
बे रोक टोक देखे चले जाते हो 

रौशन करते हो शमा 
पास बैठाने के लिए 
फिर क्यूँ बुझा देते हो 
और पास बुला लेते हो 

सीने में मेरे क्या ढूँढ़ते हो
कुछ भी तो नहीं छिपा है 

इतनी सारी जद्दो जहद क्यूँ करते हो 
बस..! केवल मेरा प्यार पाने के लिए..? 
बस..! केवल मेरा प्यार पाने के लिए..? 


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