Monday 4 April 2016

A-104 एक सुबह.......... ! 17.7.15—5.58 AM



A-104 एक सुबह.......... ! 17.7.15—5.58 AM

एक सुबह.......... ! 
चाँद तारों के संग बिताने को जी चाहता है 

कैसा वो सूरज होगा कैसी शुरुआत होगी 
कैसी वो बात होगी, कैसी मुलाकात होगी 

कैसी वो सुबह होगी, कैसा वो मंजर होगा 
कैसी वो तस्वीर होगी कैसा समंदर होगा 

कैसा चाँद होगा तारों भरा आसमान होगा 
कैसा वो नील गगन वो सुन्दर जहान होगा 

चाहत के सपने, सपनों की बरसात होगी 
एक नयी ज़िंदगी से नयी मुलाक़ात होगी 

रात अँधेरी भी क्या सपनों के साथ होगी
या वो फिर अमावस की कोई बात होगी 

रात्रिचरों की वो भयानक सी आवाज़ें होंगी  
झिंगुर की खनकती हुई तीखी साज़ होगी 

कुत्ते की भौं भौं बिल्ली की म्याऊँ-म्याऊँ 
पहरेदारों के बीच जरूर कोई तकरार होगी 

सन्नाटे का शोरगुल महकती फिजाएँ होंगी 
रोशनी का डर होगा रोशनी की बात होगी 

चोर कहाँ जायेंगे दिन को कैसे समझायेंगे 
उनके बीच चल रही कुछ खुराफ़ात होगी 

अँधेरे में जो रौशनी लेकर घूमते थे कभी 
रौशनी को लेकर मुँह छिपाने की बात होगी 

चाँद तारों के संग बिताने को जी चाहता है 
कैसा वो सूरज होगा कैसी शुरुआत होगी 

Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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