A-024 एक रात मैं 2.4.16—6.17 AM
एक रात मैं यूँ ही तन्हा हो गया
तेरे ख्यालों में ही कहीं खो गया
तेरे आगोश में था और सो गया
फिर नए ख्यालों में ही खो गया
तेरा वो बात बात पे मुस्कराना
अपनी अदाओं को यूँ जताना
आँखों से इशारे करना
प्यार भी जताना
पर किसी को न बताना
दाँतों तले मेरी ऊँगली काटी थी
कितनी खुश थी और भागी थी
तुझे जब तेरी चोटी से पकड़ा था
छुड़ा के भागी थी जब जकड़ा था
बहुत इशारे किये पर तूँ आई न
आँखों के खेल में तूँ शरमाई न
बिनतीयों और वो न न का खेल
पर शांति हुई जब हुआ था मेल
तेरा रूठ जाना तो एक बहाना था
तुमने सुनाया जो तुमने सुनाना था
आँसू दिखाए जो तुमने दिखाने थे
गुस्से के तेवर जो तुमने जताने थे
हाथ पकड़ तुमको करीब लाया था
करीब लाकर ज्यों ही मुस्कराया था
तेज हुई थी धड़कन तब तेरे दिल की
कितनी कसम कस कितनी बेदिल थी
जब मैं तेरे होठों के करीब आ रहा था
फिजायें मग्न थी मन मुस्करा रहा था
कोमल उँगलियाँ होठों से आ लगी थी
मैं खुश था और हुस्न मुस्करा रहा था
एक रात मैं यूँ ही तन्हा हो गया
तेरे ख्यालों में ही कहीं खो गया…..
तेरे ख्यालों में ही कहीं खो गया…..
Poet; Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
No comments:
Post a Comment