Thursday, 21 April 2016

A-062 कि मैं सही हूँ 8.6.15—9.17 P

A-062 कि मैं सही हूँ 8.6.15—9.17 PM

सच और झूठ का झगड़ा हो गया 
अस्तित्व बचाने का रगड़ा हो गया 
बहस छिड़ी ख़ुद को बचाने के लिए 
अपना अपना नाम कमाने के लिए 

अपने आप को सही बताने के लिए 
एक दूसरे को ग़लत ठहराने के लिए 
अकड़ दिखा यह बात बताने के लिए 
जो करना है कर लो बचाने के लिए 

प्रमाण इकट्ठे किये दिखाने के लिए 
यह बात दूसरों को समझाने के लिए 
हार जीत का फैसला हराने के लिए 
दुनिया को यह सब दिखाने के लिए 
कि मैं सही हूँ………। 

देखा तो सब कुछ खो चुका था
रिश्ता भी तार-तार हो चुका था 
प्यार का कुछ समझ आया नहीं 
अपनेपन का भी कोई साया नहीं 

जोश उमंग के चिथड़े उड़ गए थे 
सेहत संग हम पूरे उलझ गए थे 
अभिव्यक्ति भी कहीं खो गई थी 
शांति भी कहीं जाकर सो गई थी 

करना तो एक का ही चुनाव था 
ज़िंदगी का बस यही अभाव था 
जैसे ही मैंने छोड़ा, कि मैं सही हूँ 
ज़िंदगी गले मिली कि मैं यहीं हूँ 

कि मैं यहीं हूँ…… 


Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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