Friday 8 April 2016

A-091 नन्ही सी रौशनी 9.7.15--3.45AM

A-091 नन्ही सी रोशनी 9.7.15--3.45AM 

झरोखे से आती वो नन्ही सी रोशनी
एक कहानी सुना रही है

बहुत सी कहानियाँ उसने भी सुन रखी हैं 
धीमे धीमे स्वर में सब कुछ समझा रही है 

कोई तो जग गया है और कुछ तो हुआ है
किसी ने छू दिया है यह उसी का धुआँ है 

हर घर से निकल रहा हर घर में जा रहा है  
कोई किस्से और कोई कहानी सुना रहा है

कोई प्रलोभन देकर लोरी सुनाने में लगा है 
कोई ऊँचे स्वर में कोई गीत गाने में लगा है 

कोई हिलने को आतुर होता ही जा रहा है 
किसी को रोना है और कोई मुस्कुरा रहा है

कोई धीमी पद्दचाप से है बहुत करीब आया 
कोई किसी कान में लगता फिर फुसफुसाया  

बात जो भी हो पर बहुत मजा आ रहा है

चिलमन के पीछे अभी कोई बेनकाब हुआ है
नई नवेली दुल्हन से अभी आफ़ताब हुआ है 

बालों का टिक्का देख बिस्तर पे जा गिरा है
झुमका भी देखो कैसे बालों में जाके अड़ा है

दूल्हे को भी मौका देखो बराबर का मिला है
उसको छुड़ाने के बहाने हुआ उसपे वो फ़िदा है

आइने में देखो दो आशिक कैसे मिल रहे हैं
एक दूसरे को बाँहों में देखो कैसे सिल रहे हैं

यह कैसा प्रलोभन है यह कैसा यौवन है
शायद अपने शौहर के क़रीब जा रही है 

मंद मंद रोशनी और हरकत सी हो रही है
जैसे अपने साजन की बाँहों में सो रही है 

उठ कर देखो जी जरा कुछ तो गिरा है 
कोई तो उठा है जो यह खटका हुआ है

यह कौन आ गया जो हमें सता रहा है
लगता बाहर कोई है जो बतिया रहा है 

बिल्ली की म्याऊं ने सब कुछ बता दिया
निश्चिँत हो उसने भी सब कुछ हटा दिया

न कोई फासला न अब कोई दूरी कहीं  
घूँघट हटाने की अब कोई मजबूरी नहीं 

अब लगता है दोनों फिर से जुट गए हैं
उनके सिलमे सितारे फिर से लुट गए हैं 

यौवन लगता फिर से मुस्कुराने लगा है 
फिर कोई यौवन रस गुनगुनाने लगा है 

झरोखे से आती वो नन्ही सी रोशनी
एक कहानी सुना रही है

यह कैसी आवाज़ है कसमकस रोने की
कोई बच्चा ज़िद्द कर रहा नहीं सोने की

माँ ज़िद्द पे अड़ी है उसको भी सुला लूँ
थोड़ी सी अपनी थकान फिर से भुला लूँ 

लगता है माँ के आँचल में जा छिपा है
यह भी बना छिपा छिपाई का सिला है 

कभी आवाज़ दब जाती थोड़ी दुबक कर
कभी चीख उभरती है कि अब बस कर 

माँ की खीज भी अब सुनायी देने लगी है

सो जा... वरना एक दूँगी रखकर कान पर 
सुबह से ही परेशान हूँ और न परेशान कर 

तेरे बाप ने मुझे क्या नौकरानी बना रखा है
या घर की मूर्ती हूँ जो मुझको सजा रखा है 

बाप को बोल दे कर ले अपना इंतज़ाम कोई
मायके चली जाऊँगी फिर तू भी बैठ कर रोई 

झरोखे से आती वो नन्ही सी रोशनी
एक कहानी सुना रही है

दूर झरोखे से एक मधुर सी आवाज़ आई है
लगता है कोई देवी खुश होकर मुस्कुराई है

श्रद्धा सुमन के फूल अब स्फुरित होने लगे हैं 
देवी देवता भी दर्शनों को त्वरित होने लगे हैं 

साज संगीत और तन्मय का सुगम मेला है
हर साज़ ऐसे बजने लगा जैसे वो अकेला है

सितार की तार अब अपना आपा खो रही है 
सारंगी की तो पूछो मत ख़ुद को ढो रही है 

तबला थप थाप उछल उछाल बजने लगा है
हारमोनियम भी कमर कस सजने में लगा है 

जल तरंग तरंगों को बिछाने में लगा हुआ है 
गिटार की गुटरगूं दौड़ निभाने में लगा हुआ है 

समां बँधने लगा और कोई गुनगुनाने लगा है
प्यार भरा इक नग़्मा भी कोई सुनाने लगा है 

तुम भी मौज कर लो यह मौजों का मेला है
प्रभु के मिलन की सुन्दर अदभुत ये बेला है



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