Thursday 28 April 2016

A-068 मेरी पड़ोसन 28.4.16—10.10 PM

 A-68 मेरी पड़ोसन 28.4.16—10.10 PM 

आज मेरी पड़ोसन बदनाम हो गई 
बचाने की कोशिश नाकाम हो गई

बहुत कोशिश करी जान छुड़ाने की 
ज़िद कर बैठी आज साथ जाने की

जहाँ भी जाता हूँ पीछे पीछे आती है 
न वो डरती है और न ही घबराती है 

बड़ी बेशर्म है शर्म भी नहीं आती है 
बस जब देखो चिपक सी जाती है 

दूर जाता हूँ तो करीब आ जाती है 
लाख समझाये समझ नहीं पाती है 

बड़ी निर्लज है चिपक ही जाती है
डरती किसी से नहीं न घबराती है 

अब बिल्कुल पीछे ही पड़ गई है
बहुत समझाया पर अकड़ गई है 
बना लिया मन दूर भाग जाने का 
दूर जाकर और मज़ा चखाने का 

वो फिर भी मेरे साथ हो लेती है
छिपती छिपाती मुँह मोड़ लेती है 
जवाब भी जनाब मुहँ तोड़ देती है 
घर लौट जाऊँ साथ छोड़ देती है 

मैं इसको भगाकर ही दिखाऊंगा 
दिमाग इसका ठिकाने लगाउँगा 
बर्दाश्त की आखिर हद होती है 
बेवकूफों की अक्ल मंद होती है 

परेशान होकर मैं घर को हो लिया 
तकिया सिरहाने रख मैं सो लिया 
बत्ती बुझायी तो वो ग़ायब हो गयी 
मैंने कहा कहीं साथ ही न सो गयी 

देखा कोई नहीं मेरी ही परछाई थी
तब यह बात मुझे समझ आयी थी 
और कोई नहीं मेरी ही परछाई थी 
बहुत प्यारी लगी बहुत ही भाई थी 


     Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”

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