क्यों कैद कर रखा है देवी और देवताओं को
गुरुओं की अदाओं को महकती फ़िज़ायों को
पैगम्बरों के पैगाम को शिव भोले के जाम को
पवन पुत्र हनुमान को मेरे हनुमंत के राम को
ये पत्थर की दीवारें संगमरमर की मीनारें
ये छोटे छोटे खंडहर ये बड़ी बड़ी सभागारें
कहीं दीवारों पर टंगे कहीं पत्थरों में समाये
कहीं जल थल हुए रहे कही दूध संग नहाये
कौन सा फूल चढ़ाते हो कहाँ से लाते हो
अच्छा भला चढ़ा होता है उतार लाते हो
खिलते मुस्कराते को तोड़ मुर्दा बनाते हो
उसी का फूल तोड़कर उसी को चढ़ाते हो
जिसको तुम कहते हो भोग लगाया है
पता है कितने हाँथों से हो के आया है
उसी का दिया उसी को चढ़ाते हो
बाहर आकर फूले नहीं समाते हो
यह कैसा व्यंग है यह कैसा प्रसंग है
हिस्सा दे के कहते हो बहुत उमंग है
बिन मांग के गर प्रार्थना कर सकते हो
बिना प्रार्थना के शुक्राना कर सकते हो
शुक्राने के बिना रिझाना कर सकते हो
रिझाना भी क्या बुलाना कर सकते हो
वो तो भी आता है………………….पर
जब कोई कुछ नया कर के दिखाता है
वो भी अपनी दौलत खुल के लुटाता है
उसका अंतर्मन भी यूँ ही मुस्कराता है
उसके होने का एहसास पनप जाता है
तभी तेरा रोम रोम स्फुरित हो जाता है
ऐसे तो "पाली" सिर्फ वही आता है
…………………सिर्फ वही आता है
Poet:
Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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