Sunday 24 April 2016

A-059 चेहरे पे चेहरा 25.4.16—6.19 AM


चेहरे पे चेहरा 25.4.16—6.19 AM

चेहरे पे चेहरा जो चढ़ा रखा है
हाल बेहाल क्यूँ बना रखा है
इतना बोझ उठाना ही क्यूँ है
जो खुद को तूने सजा रखा है

नकाब की कीमत देखो तो जरा
एक एक पल दुखी खून से भरा
दिल की बात तो दिल में दबी है
इससे बड़ी और क्या खुदकशी है

दोहरी जिंदगी दोहरा ये मापदंड
किसके लिए जीना लेकर घमंड
सजना सजाना किस के लिए है
सज कर देखो जो अपने लिए है

जहमत उठा कभी खुद को सँवारो
मज़ा जिंदगी का फिर देखना यारो
हर पल यूँ निकले ज्यों चंदा चमेली
खुशबू इतनी जैसे मिल गयी सहेली

एक बार सनम जब मेरे घर आये
हम उनको इतना भी नहीं कह पाए
रुक जायो जरा ठहरो पल दो पल
खिसकी चुनरी थोड़ा जायूँ सम्भल

कितनी दूरी है न बीच में नकाब है
कैसे मिले कोई बीच में ही आब है
तड़फ दिल की हर बात मन में है
आँखों में नीर जलन सारे तन में है

बस और नहीं, करनी सच्ची बात है
जिंदगी की ये आखिरी मुलाकात है
शर्म हया का चेहरा ही बदनसीब है
उनसे खुले में मिलना मेरा नसीब है

आओ एक दफा सच बोल के देखें
अपनत्व समझें दिल खोल के देखें
पर्दा न रहे किसी किस्म नकाब का
दूरियां भी न रहे लगे एक ख्वाब सा

चेहरे की चमक आँखों की दमक
हर अंग रहे अपने पूरे हाव भाव में
होठों पर एक मीठी सी मुस्कान
पैदा हुआ "पाली" भी इसी सवभाव में…..
पैदा हुआ "पाली" भी इसी सवभाव में….. 

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