आज सुबह सूर्य देवता आये
लगे मुझसे थोड़ा बतियाए
हम बोले हम नहीं बतियांगे
बोले आप कैसे रूठ जायेंगे
मैंने पूछा रोज़ सुबह आते हो
और शाम को चले जाते हो
यह कौन सा तरीका है
और हमसे ही छिपाते हो
पूरब से आते हो पश्चिम को जाते हो
फिर भला पूरब से कैसे आ जाते हो
कोई गुप्त रास्ता बना रखा है
जो हमसे ही छिपाते हो
अगर कोई जादू है तो
क्यों नहीं सिखाते हो
आज सुबह-सुबह कैसे आ गए
सारी दुनिया पर कैसे छा गए
सिन्दूर इतना क्यों ढोते हो भला
जो उस रंग में ख़ुद ही नहा गए
दोपहर को क्या हो जाता है
शोले की तरह दहकने लगते हो
आग की तरह भड़कने लगते हो
हर बात पे चिढ़ने लगते हो
शाम होते ही क्यों थक जाते हो
इतना गुस्सा कहाँ छोड़ आते हो
कि गर्म होने से भी घबराते हो
भला इतने मद्धम क्यों हो जाते हो
क्यों इतने शीतल हो जाते हो
रात को डर लगता है क्या
मुँह छिपाए चले जाते हो
इतना क्यों घबरा जाते हो
जो मुझसे ही कन्नी कटाते हो
तुम कहाँ चले जाते हो
यह भी नहीं बताते हो
अपनी सुध ले लेते हो
चुपके से खिसक जाते हो
कहाँ गुजारते हो अपनी रतिया
क्यों नहीं सच बताते हो
छिपाने से भी कुछ छिपता नहीं
मुझसे ये बात क्यों छिपाते हो
अपनी ग़लती अब कैसे बताये
थोड़ा सा संभल ऊपर उठ आये
चेहरा धो के साफ़ किया
थोड़ा सा इन्साफ किया
थोड़े सजग हुए चेहरा चमकाए
फिर लगे हमसे बतियाए
नींद से बेखबर भी हो गए थे
थोड़े से सजग भी हो गए थे
लगे अब अपनी बातें सुनाने
बीच बीच में लगे मुस्कुराने
बोले
मिलने को जाता हूँ
जहान के उस मालिक से
रहता हूँ उसकी ख़ुदाई में
मर जाता हूँ जिसकी जुदाई में
हर जीव से मिलना मेरा धर्म है
चौबीसो घंटे चलना मेरा कर्म है
चाहे कोई गरीब है या अमीर हो
चाहे किसी भी माँ का शरीर हो
फर्क नहीं रखना उसका आदेश है
कोई कमी पेशी नहीं मेरा परिवेश है
जब मैं तुमको छोड़ कर गया था
मैं कहीं और कूच कर गया था
रोज़ सुबह यूँ ही तुम आया करो
मीठी-मीठी प्यारी बातें बताया करो
कभी कभी तो मेरा जी भी घबराता है
मेरा भी वक़्त यूँ निकल जाता है
तेरी बात चीत लगी मुझे बहुत ही निराली
इसीलिए तुम बहुत याद आये मेरे "पाली"
देखो आज मैं सुबह ही आ गया हूँ
तेरी बाँहों में ख़ुद ही समा गया हूँ
अच्छे लगते हो सब को बताया करो
रोज़ सुबह ख़ुद भी आया करो
औरों को भी लिवाया करो
रोज़ सुबह ख़ुद भी आया करो
औरों को भी लिवाया करो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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