यह कैसी ज़िन्दगी है
यह किसकी बंदगी है
खुद को जाना नहीं
किसी को पहचाना नहीं
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं
सोमरस कहाँ से लाऊँ
कौन सी कहानी सुनाऊँ
किसकी मैं बातें करूँ
किसके मैं संग जाऊँ
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं
हँसू भी तो किस की बात पे
रोना आये तो किस आपात पे
मुस्कुराऊँ तो किस आभास में
शुक्राना करूँ किस औकात से
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं
कुछ तो स्फुरित होता
कुछ तो अंकुरित होता
कहीं तो मुस्कान होती
कुछ तो पहचान होती
किसी को भी जाना नहीं
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं
किस पर मैं ऐतबार करूँ
गिले शिकवे और वार करूँ
किस की शिकायत करूँ
किस की हिमायत करूँ
किसको मैं प्यार करूँ
क्या है जो इजहार करूँ
क्योंकि……कुछ भी पुराना नहीं
अमृत पाल सिंह 'गोगिया'
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