Thursday 30 July 2015

A-070 जिंदगी के घने जंगल में 27.7.15—4.55 AM


A-070 ज़िंदगी के घने जंगल में 27.7.15—4.55 AM
Dedicated to my lovely & brave daughter Priyanka Singh 

ज़िंदगी का घना जंगल और कोई साक़ी नहीं है 
उम्मीद की किरण भी लगता कोई बाकी नहीं है 

कहीं पहरों का हेर फेर है कहीं पत्थरों का ढेर है 
कहीं सुगम रास्ते हैं मगर किस्मत का हेर फेर है 

कहीं पगडंडिआँ कहीं उतार चढ़ाव हैं  
कहीं ऊपर नीचे, सारे ही तो पड़ाव हैं  
हर पड़ाव ज़िंदगी का सुन्दर नज़ारा है 
जो मिला है वह तत्छन्न वही हमारा है 

गिले-शिकवे सभी ज़िंदगी के हिस्से हैं 
बाकी सब कहानियाँ हैं और किस्से हैं 
नहीं उनसे हमारा कोई भी टकराव है 
ज़िंदगी का बस एक ही तो सुझाव है 

नहीं करना ख़ुद से कोई मन-मुटाव है 
यही खूबसूरती है यही हमारा पड़ाव है 
एक एक पायदान चढ़ते चले जाना है 
उतार चढ़ाव के संग सदा मुस्कुराना है

कभी खट्टा कभी मीठा फल खाना है  
कुछ किया है कुछ कर के दिखाना है 
कुछ जड़ें बिखरी हैं उनको समेटना है 
नई लकीरें देखो उनको ही खींचना हैं 

ज़िंदगी की नई कहानी ही आधार है 
नई कहानी ही ज़िंदगी का विस्तार है 
जितने भी कदम हों तुमने ही उठाने हैं 
न किसी को जताना न ही गिनवाने हैं 

न कोई अफसाना बने न ही छिपाने हैं 
तुमने ही ढूँढने वो मुस्कुराने के बहाने हैं 
जंगल का घनत्व ही ज़िंदगी का सार है 
उनके संग रहने में ही ज़िंदगी भी पार है 

बिखरी जड़ों को भी तुमने ही समेटना है 
स्थूल काया को भी तुमने ही लपेटना है 
हर रात की हकीकत सुबह की साक़ी है 
गैरत भरी ज़िन्दगी की यही तो उदासी है 

अँधेरे से निडर हो उज्जवल को याद कर 
हाथों पर भरोसा कर तू न फरियाद कर 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”


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4 comments:

  1. Sir good morning it's truth of life excellent poem sir

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  2. Thank you so much Sanjiv Ji! For your wonderful comments and inspiration!

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  3. Replies
    1. Thank you so much Ganga Ji for your wonderful comments and inspiration!

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