A-183 डर लगता है तेरे पास आने में 24.4.15--4.15AM
डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में
तेरी नज़र से नज़रें मिलाने में
टूटे न सब्र तेरे करीब आने में
तेरा अच्छा होना मुझे डराता है
तेरा भरोसा मुझे काट खाता है
न देखो इस कदर मेरे ए सनम
तेरा ऐसा होना आग लगाता है
तुमने सिर्फ चुटकी ही तो काटी थी
सिहरन सारे तन बदन में जागी थी
अंग अंग से छूटने लगा पसीना था
मर ही गई मुश्किल हुआ जीना था
प्यार से कलाई ही तो पकड़ी थी
अंदाज़ा भी है कितना तड़फी थी
जान निकल गयी थी उसे छुड़ाने में
उलझ गयी थी खुद को समझाने में
तूने प्यार से करीब ही तो बुलाया था
सारे तन बदन ने मुझको हिलाया था
दिल मेरा उछले भी कभी घबराया था
कुछ कहना था मगर कह न पाया था
तेरे हाँथो के निवाले कुछ कम नहीं
मेरे होठों को भी छुएं कुछ गम नहीं
तेरी अदा मुझे बार बार खिलाने की
काफी थी मेरे लिए मुझे रिझाने की
तुमने मुझे छुआ मैं मर ही गयी थी
बाहों में आकर तो डर ही गयी थी
तड़प थी खुद को तुझसे छुड़ाने की
या तड़प थी बाँहों में कसमसाने की
बाहों के दरमियाँ गिरकर भी देखा है
वफ़ा पे शक नहीं तेरी भी एक रेखा है
कैसे कहूँ मैं अब कि तुम मेरे नहीं हो
तुम ही तो हो यही मेरी जीवन रेखा है
अभी मेरा सोलह श्रृंगार भी बाकी है
प्रियसी होने का इंतज़ार भी बाकी है
मेरे सपने मेरे ख्वाब भी गौर तलब हैं
हकीकत की दुनिया इज़हार बाकी है
डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में
तेरी नज़र से नज़रें मिलाने में
टूटे न सब्र तेरे करीब आने में
तेरा अच्छा होना मुझे डराता है
तेरा भरोसा मुझे काट खाता है
न देखो इस कदर मेरे ए सनम
तेरा ऐसा होना आग लगाता है
तुमने सिर्फ चुटकी ही तो काटी थी
सिहरन सारे तन बदन में जागी थी
अंग अंग से छूटने लगा पसीना था
मर ही गई मुश्किल हुआ जीना था
प्यार से कलाई ही तो पकड़ी थी
अंदाज़ा भी है कितना तड़फी थी
जान निकल गयी थी उसे छुड़ाने में
उलझ गयी थी खुद को समझाने में
तूने प्यार से करीब ही तो बुलाया था
सारे तन बदन ने मुझको हिलाया था
दिल मेरा उछले भी कभी घबराया था
कुछ कहना था मगर कह न पाया था
तेरे हाँथो के निवाले कुछ कम नहीं
मेरे होठों को भी छुएं कुछ गम नहीं
तेरी अदा मुझे बार बार खिलाने की
काफी थी मेरे लिए मुझे रिझाने की
तुमने मुझे छुआ मैं मर ही गयी थी
बाहों में आकर तो डर ही गयी थी
तड़प थी खुद को तुझसे छुड़ाने की
या तड़प थी बाँहों में कसमसाने की
बाहों के दरमियाँ गिरकर भी देखा है
वफ़ा पे शक नहीं तेरी भी एक रेखा है
कैसे कहूँ मैं अब कि तुम मेरे नहीं हो
तुम ही तो हो यही मेरी जीवन रेखा है
अभी मेरा सोलह श्रृंगार भी बाकी है
प्रियसी होने का इंतज़ार भी बाकी है
मेरे सपने मेरे ख्वाब भी गौर तलब हैं
हकीकत की दुनिया इज़हार बाकी है
डर लगता है तेरे पास आने में
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!
आने हँसने और मुस्कुराने में……..!
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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