Thursday 30 July 2015

A-126 मैं जो नहीं हूँ -6.6.15 - 5.57 AM --POEM

मैं जो नहीं हूँ वही तो होना चाहता हूँ
अपनी यही बात मैं खुद से छुपाता हूँ
यह बात मैं किसी को नहीं बताता हूँ
अंदर रोता हूँ और बाहर मुस्कराता हूँ

कितने ही दर्द अपने दिल में समेटे हैं
दिल में बेचैनी है खोये खोये लेटे  हैं
साँस आती नहीं रुक रुक कर लेते हैं
आंसू भी जब आते हैं तो छुपा लेते हैं

ज़िंदगी ने भी बहुत सारे दर्द दे दिए हैं
फिर भी देखो हम मुस्करा कर जिये हैं
हमने कपड़े भी कितने सुन्दर सीए हैं
इतना सारा दिखावा किसके लिए है

जब मुस्कराता हूँ कुछ तो छुपाता हूँ
चंगा भला हूँ फिर यही तो दिखाता हूँ
पता नहीं मैं कहाँ कहाँ खोया रहता हूँ
इसीलिये जाग के भी सोया रहता हूँ

मैं अपने दर्द को खुद में ही समेटा हूँ
मुझे सुध बुध नहीं कि कौन लेता है
किसी से पूछना मुझे गवारा नहीं है
अहंकार से आगे कोई हमारा नहीं है

भरोसा नहीं है मुझे मेरी जिंदगी पे
कोई अपना नहीं सिवाय गंदगी के
हर कोई यहाँ केवल बवाल करता है
हर कोई मुझसे ही सवाल करता है

नहीं करनी मुझे किसी से बातचीत
दिन बीत गया रात भी जाएगी बीत
खुद बातें कर खुद से जवाब लेना है
नहीं चाहिए न कोई खिताब लेना  है

गुमसुम होना अच्छा लगता नहीं है
क्या करूँ कुछ जचता भी तो नहीं है
चन्द लोग ही हैं मेरा दर्द समझते है
साथ भी देते हैं और दम भी भरते हैं

जब मैंने उनसे अपना जिक्र किया
उन्होंने फिर मेरा बहुत फ़िक्र किया
मन मेरा भी थोड़ा हल्का होने लगा
जीने का आभास जिन्दा होने लगा

शुक्र है खुदा का कुछ मेरे अपने भी हैं
उनके साथ संजोय कुछ सपने भी हैं
मैं क्यूं मैं रख लेता हूँ पुरानी बातचीत
अब नहीं रखनी जो बात गयी है बीत

सपने भी मेरे हैं मैंने ही तो संजोय थे 
अपनों संग मिलकर मैंने ही पिरोये थे 
उमंग भी मेरी है रंग भी मैंने ही भरने हैं
जिम्मेवारी भी मेरी है मैंने ही करने हैं

मैं जो नहीं हूँ वही तो होना चाहता हूँ
अपनी यही बात मैं खुद से छुपाता हूँ



2 comments:

  1. This poem is the story of every one,you have put in beautiful words

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  2. This poem is the story of every one,you have put in beautiful words

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