A-065 चलते सफर में 7.5.15—7.48 AM
चलते सफर में साथ ढूँड लेना कोई
हाथों में हाथ लेकर चूम लेना कोई
मिल जायेंगे बहुत अंजानी डगर पे
थोड़ा भरोसा रखना अपनी मगर पे
यह मत जानो की अपने बुरे होते हैं
हरेक रंगीन सपने वही तो पिरोते हैं
उनकी ही वजह से हम आगे बढे हैं
आज लोग हमारे पीछे क्यों खड़े हैं
कल वो अपने थे आज क्यों पराये हैं
क्या हुआ जो काट खाने को आये हैं
क्या हुआ है जो मुस्कुराते भी नहीं
दिल की बात भी वो बताते ही नहीं
अपनों के खिलाफ हम दावे करते हैं
हम सही हैं और यही इरादे रखते हैं
उनकी ग़लती उँगलियों पर गिनाते हैं
ख़ुद इतने स्याने कि सुन नहीं पाते हैं
फिर अपनी प्रभुता ले हम निकलते हैं
अपने ही गुस्से को दूसरों पर मढ़ते हैं
हम अपने तरीके से खिसक लेते हैं
मौन रहकर फिर उनको सजा देते हैं
अपने पक्ष का हम समर्थन करते हैं
सही होने के प्रमाण प्रबंधन करते हैं
दूसरों के तरीके हम दुर्बल बनाते हैं
निकम्मों संग समझदार कहलाते हैं
इन हालातों संग जीना भी जरुरी है
दूसरों को हराना भी मेरी मजबूरी है
मजा आता है रोटियों को सेकने में
क्यों कि अब दिखता नहीं देखने में
लूट गए अरमान प्यार का पता नहीं
गलतियां क्या हैं पर कोई खता नहीं
नहीं करते हम खुलकर कोई भी बात
दिन भी निकल जाये चाहे निकले रात
ज़िन्दगी का जोश खत्म हुआ जाता है
कहाँ उत्साह गया कोई नहीं बताता है
बिमारिओं के घेरे में सिमट सा गया हूँ
ज़िन्दगी नष्ट हुई मैं ख़िसक सा गया हूँ
इतनी बात मुझे आज समझ आयी है
मेरे ही शिकवों ने की सारी अगवाई है
सारा कलह सिर्फ अपनी वजह से था
आज तन्हा सिर्फ अपनी वजह से था
नहीं रखनी शिकायतें अब ज़िन्दगी में
प्रभु की कृपा हो और मैं रहूँ बंदगी में
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
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Osm sir ji
ReplyDeleteWah wah wah Kya bat Kya bat.....
ReplyDeleteNice superb awesome great fabulous.
So much of love! I am touched by your comments! Love You
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