Thursday 30 July 2015

मन न जाने अब कहाँ खो गया-29-6-15—5:50 AM--POEM

मन जाने अब कहाँ खो गया
हसीन वदिओं में कहीं सो गया
बादलों के झुरमुट कहीं बादलों की गड़गड़ाहट
रिमझिम का है मौसम उसकी ही है आहट
कहीं सुनहरी लकीरों का है अंदाज़ है निराला
कहीं उनकी गर्जन गरजे बन नगारा
कहीं हवा के झोंके उड़ाएं जल समुन्दर
कहीं हवा के झोकें बन जाएं हैं बवंडर
कहीं पत्तों का होड़ मचाये इतना शोर
लगे अब टहनियां टूटी कि अब टहनियां टूटी
नहीं रुकेंगे अब ये तूफानों के घेरे
कुछ मेरे छप्पड़ उड़ेंगे कुछ उड़ेंगे तेरे
वो उड़ गयी छतरी वो उड़ी चुनरिया
वो भाग खड़ी हुई जंगल की बंदरिया
बच्चे गले लगाये उसको कहाँ छुपाये
यह मुश्किल है उसकी किसको ये बताये
कभी एक टहनी के नीचे कभी दूसरी पर चली जाये
उधर पंछी बेचारे करते हैं इशारे
छुप जाओ अँधेरे में मत जाओ करन खवारे
कभी कभी ची ची की आवाज है आई
लगता है उसकी अम्मा कोई दाना चुन कर लाई
कितनी भीगी होगी और कितनी घबराई
इतनी बारिश में भी दाना कहाँ से चुन कर लाई
बच्चे भूखे रह जायें हर माँ की हैं दुआएं
बच्चे भूखे रह जायें हर माँ की हैं दुआएं

हर माँ की हैं दुआएंहर माँ की हैं दुआएं………






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