A-084 तेरे दर्द का एहसास 5.5.15—1.27 AM
Dedicated to my lovely wife
तेरे दर्द का एहसास है मुझे
जब तेरी और मेरी शादी की बात चली थी
सुन्दर सलोना मुखड़ा और तू कितनी भली थी
कितना विरोधाभास था एक शादी को लेकर
तेरी याचना भी असफल रही कुल ले दे कर
माँ !
यह कोई उम्र है अभी मेरी शादी रचाने की
मत करो बात कोई अब मुझे समझाने की
अभी तो मेरी उम्र है अब कॉलेज में जाने की
माँ कौन करेगा बात वहाँ मुझको पढ़ाने की
मान जाओ माँ जिद न करो मुझे रिझाने की
लड़का कैसा है जरूरत नहीं मुझे बताने की
ऊँचे लोग होंगे पर यह बात नहीं जताने की
कोई जरुरत नहीं इस तरह मुझे मनाने की
मुझे तो अभी पढ़ना है मौज मस्ती के संग
देखने भी नहीं चाहिए मुझे शादी के रंग ढंग
सिर्फ उन्नीस की हुई हूँ अभी उम्र भी कम है
इतना बोझ सहने का अभी मुझमें नहीं दम है
अभी तो घूमने फिरने मस्ती करने के दिन हैं
आज़ादी बिना जीवन भी होना छिन्न भिन्न है
कोई नहीं कह पायेगा मेरे ससुराल में आकर
झूठी ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी सच को छुपाकर
नहीं माना कोई और मेरा रिश्ता भी हो गया
रोती गिड़गिड़ाती रही और आँसू भी खो गया
साथी के मिलने की ख़ुशी गवारा भी नहीं थी
अकेलेपन में कोई सखी बनी सहारा नहीं थी
शादी हो गयी मैं ससुराल में चली आयी हूँ
ख़ुद को छिपाकर बबली को मार आयी हूँ
कुम्हार की मिटटी से बनी एक खिलौना हूँ
घूँघट में लिपटी एक सुन्दर रूप सलोना हूँ
अजनबियों के बीच सिमटी एक नन्ही जान
मुझे कोई जानता नहीं न कोई मेरी पहचान
इनकी बीबी हूँ मुझे मिला यही मेरा नाम है
सबको प्यार कर खुश रखना मेरा काम है
बड़ी अदब से गृह लक्ष्मी बना सजाया है
बहुरंगी लोगों ने मुझे इस तरह फँसाया है
कदम उठाना मुनासिब नहीं क्यों उठाया है
कोई दिखता नहीं अपना हर कोई पराया है
रिश्तों पे खरी उतरूँ हर दिल को बेकरारी है
सास ने घर सम्भाला और अब मेरी बारी है
पति महोदय खुश रहे मेरी ज़िम्मेदारी है
रात निकल जाये तो बाकियों की बारी है
मैं तो यहाँ कुछ हूँ ही नहीं एक अदद नारी हूँ
जितना मर्ज़ी कर लूँ फिर भी मैं अत्याचारी हूँ
कौन जाने मेरे दर्द को कि मैं भी एक इंसान हूँ
मैं इनकी घर वाली हूँ केवल इतनी पहचान हूँ
समझौता कर लिया जब एक साथ जीने का
कोई फर्क नहीं पड़ता फिर उधेड़बुन सीने का
माँ ने सबक दे डाला अदब और सत्कार का
असर दिखने लगा माँ के सच्चे हथियार का
कुर्बान जाऊँ पति के अच्छे होने के तरीकों से
मेरे लिए वक़्त नहीं खेलती रही मैं लकीरों से
कभी सास की सुनो कभी देवर और ननद की
ख़ुद बेशक भूखे रहो पर बात केवल अदब की
थकावट का जनाजा हूँ पर करो न कोई सवाल
इनकी बाँहों में समां जाऊँ न करूँ कोई मलाल
बेजुबान पंछी तड़प कर बन जाऊँ इक मिसाल
अच्छी घर वाली बनकर चाहे जो हो मेरा हाल
एक देवर ही है जो मेरा दर्द थोड़ा समझता है
ननद सास भी अच्छी फिर भी मन उलझता है
इनसे बात करते ही मन बहुत डरने लगता है
कोई आज़ादी नहीं है घुटन से मन सुलगता है
कैसे दिखाऊँ अपने दहकते हुए अंगारों को
अपने आँसुओं का सैलाब अपने विचारों को
पिता श्री कहते हैं बेटा न कर ज़िंदगी खराब
वर्ना देना पड़ेगा वक़्त को तुम्हें सारा हिसाब
सिहरती सो जाती अपनी नम आँखों के साथ
सब ठीक हो जायेगा पर होगा वक़्त के साथ
बहुत सुना बड़े लोग हैं मुझे तो दिखता नहीं है
आम ज़िन्दगी है शायद मेरी किस्मत में यही है
सुना लोग हीरे जेवरातों के बड़े शौक़ीन होते हैं
यहाँ कपडे सिलवा लो तो सब ग़मगीन होते हैं
मुझे मौका मिला देवर की शादी रचाने का
मिल गया कारण मेरी ख़ुशी व मुस्कुराने का
बड़े चाव से काम किया सब निपटाने का
भाभी कपड़े बदल लो मौका है दिखाने का
इनको जानो तो यह सदा बेहोशी में रहते हैं
इनको दिखता नहीं केवल हर बात सहते हैं
यह इंसान मेरा नहीं न जाने लोग क्या कहते हैं
हम एक कमरे में हैं मगर दो इंसान बन रहते हैं
हम एक कमरे में हैं मगर दो इंसान बन रहते हैं
Poet: Amrit
Pal Singh Gogia “Pali”
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