Thursday 30 July 2015

A-178 किस से शिकायत करूँ 5-7-15—8.00AM

A-178  किस से शिकायत करूँ 5-7-15—8.00AM 

उम्र के इस ढलान पर अँधेरा सा छाने लगा है 
कैसे मैं सब्र करूँ अब हर कोई सुनाने लगा है 

कोई भी तो नहीं है जो मेरे करीब हो
दिल का अमीर हो मन का गरीब हो
गिले शिक़वे शिकायतों से परे कहीं 
सुन्दर सुहानी ज़िंदगी की तरतीब हो 

मेरे नसीब में नहीं अब सुहानी ज़िंदगी
किसका सहारा और कैसे करूँ बंदगी
बीते कल के साथ जुड़ी हुई है गंदगी
कौन सी भविष्य कैसी होगी पसंदगी

परिवार का सहारा खिसकता सा है
आँसूओं के मोती बन बिखरता सा है
सपनों पर भरोसा कैसे कर सकती हूँ 
सँवरता कुछ नहीं सब बिगड़ता सा है

नफरत से भरी और भी तन्हा हो गयी
बेचैनी आँखों में लिए हुए ही सो गयी
ज़िन्दगी इर्द गिर्द घूम कर पूछने लगी
अपने ख्यालों से खुद ही जूझने लगी 

शिकायतों के संग कुछ भी मिला नहीं
उनको जब छोड़ा अब कोई गिला नहीं
नहीं चाहिए मुझे अब कोई भी गुफ़्तगू 
मिल जायेगा मुझे जो कभी मिला नहीं

मेरा खुद का भरोसा बनने सा लगा है
श्रद्धा सुमन का फूल मचलने लगा है 
कुछ नया नया आभास आने लगा है 
मन का विश्वास कोई जगाने लगा है

जो बीत चुका उसकी क्यों बात करूँ
चलो एक नए युग की शुरुआत करूँ
पलों से पहले इस पल को मैं वार दूँ 
इन्हीं नए पलों संग ख़ुद को संवार लूँ

Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”




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