तुम प्यार में पागल हो कि मैं तेरा दीवाना हूँ
तुम मेरी मल्लिका हो कि मैं तेरा परवाना हूँ
नहीं इल्म मुझे कि तेरे वज़ूद में ऐसा क्या है
जो स्वयं मुख्तयार होकर भी मुझसे जुदा है
मौजूद होने से पहले हम थोड़ा सा ध्यान दें
एक दूसरे को भी हम इत्मिनान से जान लें
एक-दूसरे की राह का एहसास हो परस्पर
एक दूसरे का मानसिक विकास हो निरंतर
याद करो तुम जब हम पहली बार मिले थे
एक दूसरे से अन्जान तब भी फूल खिले थे
तेरे चेहरे की दमक और हया का वो पहरा
दिल पे उसका असर भी था कितना गहरा
तयशुदा मुकम्मल था कि पागल हो रहे थे
एक स्वप्निल संस्कार सपनों में पिरो रहे थे
तुमको देखकर हम भी नशीले से हो रहे थे
मन विचलित और हम डर को संजो रहे थे
इक बार तो लगा हम दोनों घबराने लगे थे
अपनी नज़रें हम खुद से ही छिपाने लगे थे
सवालों के ज़ख्म जब सिर हिलाने लगे थे
हम अपने विचारों पर अंकुश लगने लगे थे
एक दूसरे की दिक्क्तों को हम पहचान लें
प्यार से सुन पुकारने को प्यारा सा नाम दें
चलो छोड़ो ये ज़िद्द थोड़ा सब्र से काम लें
आगे बढ़कर एक दूसरे का दामन थाम लें
Poet: Amrit Pal Singh Gogia “Pali”
Very nice Sir...beautiful collection of words.
ReplyDeleteThank you so much Veena ji
Delete👍👍
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