Thursday 30 July 2015

A-131 आईना 18.9.2020--7.31 PM

बदल-बदल कर आईना देखा करो 

कहीं स्वयं आईना बीमार हो जाये 


तू मुस्कुराये तो मोती भी कम पड़ते हैं 

कहीं उसका दिल बेकरार हो जाये 


तेरे हंसी चेहरे पर जो फूल खिलते हैं 

हँसी को देख कहीं बेताब हो जाये 


ख़ूबसूरती की मिसाल है तेरा ये हुस्न  

आईने को ही तुझसे प्यार हो जाये 


उसके आसपास तुम इतराया करो 

कहीं उसका ही बुरा हाल हो जाये 


तेरे पग पैरों घुँघरू भी खूब मचलते हैं 

कहीं तेरी आदत में शुमार हो जाये 


तेरे नैन शराबी मदहोशी का है आलम 

कहीं इसी बात पर बवाल हो जाये


बढ़ चढ़ के तुम यूँ ही निकला करो 

आईना ही इसका शिकार हो जाये 


कमर लचका के चलना ये तौबा मेरी 

आईना ही अपने से बाहर हो जाये 


मेरी मानो आईने को बेदख़ल कर दो 

कहीं बेसब्री का इंतकाल हो जाये 


अमृत पाल सिंह 'गोगिया'

No comments:

Post a Comment